Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पञ्चदशौ
भावार्थ-पुष्य नक्षत्र को प्राप्त होने वाला उत्तरायण शुक्र ब्राह्मणों का घात करता है, और पुनर्वसुका शुक्र उसी प्रकार हो तो शिल्पियों का व धर्मात्माओं का घात करता है ॥ ११० ॥
वङ्गा उल्कल चाण्डाला: पार्वतेयाश्च ये नराः । इक्षुमन्त्याश्च पीडयन्ते आर्द्रामारोहणं यथा ।। १११ ।
उसी प्रकार (आर्द्रामारोहणं यथा) आर्द्रा नक्षत्र में शुक्र आरोहण करे तो (वन) वंगवासी (उल्कल) उल्कलवासी ( चाण्डाला:) चाण्डाल, ( पार्वतेयाश्चयेनरा ) पर्वत पर रहने वाले मनुष्य (इक्षुमन्त्याश्च ) इक्षुमति नदी के किनारे पर निवास करने वाले ( पीडयन्ते) पीड़ा को प्राप्त होते हैं।
भावार्थ — आर्द्रा नक्षत्र में शुक्र आरोहण करे तो वज्रवासीयों को उत्कलवासियों को पर्वत पर रहने वालों को व इक्षुमति नदी के किनारे पर रहने वालों की पीड़ा होती है ।। १११ ॥
मत्स्यभागीरथीनां तु शुक्रोऽश्लेषां
यदाऽऽरुहेत् । वामगः सृजते व्याधिं दक्षिणो हिंसते प्रजाः ॥ ११२ ॥
( यदा) जब (शुक्रो ) शुक्र (वामगः सृजते ) वाम भाग जाता हुआ (अश्लेषांऽऽरुहेत्) आश्लेषा का आरोहण करे (तु) तो (मत्स्यभागीरथीनां व्याधिं ) मत्स्य देशवासी और भागीरथी नदी के किनारे पर रहने वालों को व्याधियाँ उत्पन्न होती है, (दक्षिणो हिंसते प्रजाः) और उसी प्रकार दक्षिण भाग में शुक्र है तो प्रजा की हिंसा करेगा। भावार्थ- जब शुक्र वाम भाग होता हुआ आश्लेषा पर आरोहण करे तो मत्स्य देशवासी भागीरथी तट के वासीयों को व्याधियाँ उत्पन्न होगी, उसी प्रकार दक्षिण भाग का शुक्र हो तो प्रजा की हिंसा करेगा ॥ ११२ ॥
मघानां दक्षिणं पाश्र्व भिनत्ति यदि भार्गवः । आढकेन तदा धान्यं प्रियं विन्द्यादसंशयम् ॥ ११३ ॥
( यदि भार्गवः) यदि शुक्र ( मघानां दक्षिणं पार्श्व) मघा नक्षत्र का दक्षिण