Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु मंहिता
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भावार्थ-जब शुक्र पुनर्वसु नक्षत्र में आरोहण करे तो गोधनों का धन्धा करने वालों का हास-प्रहास होता है राष्ट्र में व विदर्भ में दासों को प्रशन्नता प्राप्त होती है॥१०७॥
शम्बरान् पुलिन्दकाच श्वानषण्ढांश्च वल्कलान्।
पीडयेच्च महासण्डान् शुक्रस्ताशेन यत्॥१०८॥ (यत्) जो (तादृशेन) उसी प्रकार का (शुक्र;) शुक्र है (शम्बरान्) भील (पुलिन्दकाश्च) पुलिन्द (श्वान) श्वान, (षण्ढाश्च) नपुंसक, (वल्कलान्) वल्कधारी (महासण्डान्पीडयेच्च) महान नपुंसक को पीड़ा देता है।
भावार्थ-जो उसी प्रकार का शुक्र है वो भील, पुलिन्द, श्वान नपुंसक वल्कधारी और महान नपुंसक को पीड़ा देता है।। १०८ ।।
प्रदक्षिणे प्रयाणे तु द्रोणमेकं तदा दिशेत् ।
वामयाने तदा पीडां ब्रूयात्तत्सर्व कर्मणाम् ॥ १०९॥ पुनर्वसु नक्षत्र का घात कर शुक्र के (प्रदक्षिणेप्रयाणे तु) प्रदक्षिणी रूप गमन करे तो (द्रोणमेकं तदा दिशेत्) एक द्रोण प्रमाण वर्षा या धान्य होगा ऐसा कहे (वामयाने) इसी प्रकार वाम भाग में हो तो (तत्सर्व कर्मणाम् पीड़ा ब्रूयात्) वहाँ पर सभी कार्यों में पीड़ा होगी।
भावार्थ-यदि पुनर्वसु नक्षत्र का घात करता हुआ दक्षिण भाग में शुक्र का गमन हो तो एक द्रोण प्रमाण जल की वर्षा व धान्य होता है और वाम भाग से उसी प्रकार गमन करे तो वहाँ के सभी कार्यों में विघ्न पड़ता है।। १०९।।
पुष्यं प्राप्तो द्विजान् हन्ति पुनर्वसावपि शिल्पिनः ।
पुरुषान् धर्मिणश्चापि पीड्यन्ते चोत्तरायणाः॥११०॥ (पुष्यं प्राप्तो) पुष्य नक्षत्र को प्राप्त होने वाला (चोत्तरायणा:) उत्तरायण शुक्र (द्विजान् हन्ति) ब्राह्मणों का घात करता है (पुनर्वसावपि) पुनवसु में उसी प्रकार शुक्र हो तो (शिल्पिन:) शिल्पियों को पीड़ा देता है (धर्मिणश्चापि पुरुषान् पीड्यन्ते) और धार्मिक पुरुषों को भी पीड़ा देता है।