Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पञ्चदशोऽध्यायः
पूर्वाफाल्गुन: सेवेत निकां रूपजीविनीः।
पीडयेद्वामगः कन्यामुग्रकर्माणं दक्षिणः ॥ ११७ ॥ (पूर्वाफाल्गुनीं) पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में शुक्रका (वामगः) बाँयी ओर से (सेवेत) आरोहण करे तो (रूपजीविन गणिकां) वैश्याओं को (पीडयेद) पीड़ा देता है (दक्षिण:)
और दक्षिण रूप शुक्र हो तो (कन्यामुग्रकर्माणं) कन्याओं की व उग्र कर्म करने वालों को पीड़ा देता है।
भावार्थ--पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्रमें शुक्र का वाम भाग आरोहण हो तो समझो (रूपजीवी) वैश्याओं को पीड़ा होती है और दक्षिण रूप हो तो कन्याओं को व उग्रकर्म करने वालों को पीड़ा होती है।। ११७ ।।
शबरान् प्रतिलिङ्गानि पीडयेदुत्तरा श्रितः।
वामगः स्थविरान् हन्ति दक्षिणः स्त्रीनिपीडयेत्॥११८॥ (उत्तराश्रितः) यदि शुक्र उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रमें (वामग:) वामभाग में आरोहण करे तो (शबरान्) शबर, (स्थविरान्) साधुओं को, (प्रतिलिजानि) प्रतिलिङ्गधारीयों को (पीडयेद्) पीड़ा देता है (हन्ति) मारता है (दक्षिण:) दक्षिण भाग से आरोहण करे तो (स्त्रीनिपीडयेत्) स्त्रीयों को पीड़ा होती हैं।
भावार्थ-यदि शुक्र उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में वाम भाग से आरोहण करे तो शबर, स्थविर, प्रतिलिङ्गधारीयों को पीड़ा व मारता है और दक्षिण से उसी प्रकार शुक्र आरोहण करे तो स्त्रियों का विनाश करता है।। ११७ ।।
काशाँश्च रेवती हस्ते पीडयेत् भार्गवः स्थितः।
दक्षिणे चौरघाताय वामश्चौर जयावहः ॥११९ ॥ (रेवतीहस्ते) रेवती नक्षत्र और हस्तनक्षत्र में यदि (भार्गव:) शुक्र (स्थित:) स्थित है तो (काशाँश्च पीडयेत्) काश का घात होता है (दक्षिणे चौरघाताय) दक्षिण में हो तो चोरों का घात करता है (वामश्चौर जयावहः) वाम हो तो चोरों की जय करता है।
भावार्थ-यदि शुक्र रेवती, हस्त नक्षत्र में आरोहण करे तो समझो काश