Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पञ्चदशोऽध्यायः
भावार्थ-यदि चित्र नक्षत्र के अन्तिम चरण में शुक्र आरूढ हो और वो भी वाम भाग में हो तो व्याधियों को उत्पन्न करता है अगर दक्षिण में हो तो बनियों का विनाश करता है। १२२॥
स्वातौ दशाणाश्चेति सुराष्ट्रं चोपहिंसति।
आरूढो नायकं हन्ति वामो वामं तु दक्षिणः॥१२३॥ (स्वाती) स्वाति नक्षत्र में शुक्र (आरूढो) आरूढ करे तो (दशार्णाश्चेति) दशार्ण देश और (सुराष्ट्र चोपहिंसति) सौराष्ट्र देश का नाश करता है (वामौ) अगर वाम भाग से आरूढ करे तो वाम भाग के (नायकं हन्ति) नायक का नाश करता है (दक्षिणे तु) दक्षिण भाग से आरोहण करे तो दक्षिण भाग के नायक को मारता
भावार्थ-स्वाति नक्षत्र में शुक्र आरूढ हो तो दक्षिण देश व सौराष्ट्र देश का नाश होता है, अगर वाम भाग से हो तो वाम भाग के नायक को मारेगा और दक्षिण भाग का हो तो दक्षिण के नायक को मारेगा॥१२३॥
विशाखायां समारूढो वरसा मन्त जायते।
अथ विन्द्यात् महापीडां उशना सवते यदि ॥१२४ ॥ (विशाखायां समारूढो) विशाखा नक्षत्र में शुक्र आरूढ हो तो (वर सामन्त जायते) श्रेष्ठ सामन्त उत्पन्न होते हैं (यदि) यदि (उशानाम्रवते) शुक्र म्रवित होता दिखे तो (अथ महापीडां विन्द्यात्) समझो वहाँ पर महापीडा होगी।
भावार्थ-विशाखा नक्षत्र में आरूढ होने वाला शुक्र श्रेष्ठ सामन्तों को पैदा करता है अगर शुक्र च्युत होता हुआ दिखाई पड़े तो समझो वहाँ पर महापीडा उत्पन्न होगी॥१२४ ॥
दक्षिणस्तु मृगान हन्ति पश्चिमो पाक्षिणान् यथा।
अग्निकर्माणि वामस्थो हन्ति सर्वाणि भार्गवः ॥ १२५॥ उपर्युक्त (भार्गव:) शुक्र (दक्षिणस्तु मृगान हन्ति) दक्षिण दिशा का हो तो मृगों का नाश करता है (यथा) यथा (पश्चिमो पाक्षिणान्) पश्चिम का हो तो पक्षियों