Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
का हो तो भयंकर फल देगा और विमल प्रशन्न वर्ण का शुक्र हो तो समझो वह सुखकारी जानना चाहिये ।। १३० ।।
हन्ति मूलफलं मूले कन्दानि च वनस्पतिम् । औषध्योर्मलग चार भावकाण्णवसीडिकः ॥ १३१ ॥
(मूल) मूल नक्षत्र में शुक्र आरोहण करे तो (फलं) फल (मूले) मूल (कन्दानि ) कन्द (च) और (वनस्पतिम् ) वनस्पतियाँ (औषध्योर्मलयंचाऽपि ) औषधि मलयागिरी चन्दन का और भी (माल्य काष्ठोपजीविनः ) मालाकाष्ठादि को जीवी का करने वालों को ( हन्ति) मारता है।
भावार्थ — मूल नक्षत्र पर शुक्र आरोहण करे तो फल, मूल, कन्द, वनस्पति, औषधि, चन्दन का काम करने वाले और मालाकाष्ठादिक का व्यापार करने वालों का घात करता है ।। १३१ ।।
यदाऽऽरुहेत् प्रमर्देत कुटुम्बाभूश्च दुःखिताः । कन्दमूलं फलं हन्ति दक्षिणो वामगो जलम् ॥ १३२ ॥
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( यदाऽऽरुहेत् प्रमर्देत) जब शुक्र आरोहण या प्रमर्दन करता हुआ मूल नक्षत्र में (दक्षिण) दक्षिण का हो तो (कुटुम्बाभूश्च दुःखिताः) कुटुम्ब भूमि आदि दुःखित होते हैं (कन्दमूलंफलं हन्ति) कन्दमूल और फलों का नाश करता है (वामगो जलम् ) वाम भाग में हो तो जल का विनाश करता है।
भावार्थ - यदि मूल नक्षत्र का शुक्र प्रमर्दित होता हुआ दक्षिण में आरोहण करे, तो समझो कुटुम्ब और भूमि आदि दुःखित होते है कन्द, फल, मूल को नाश करता है, वाम भाग में हो तो जल का नाश करता है ॥ १३२ ॥
आषाढस्थ:
वामभूमिजलेचारं शान्तिकरश्च
प्रपीडयेत् ।
मेघश्च तालीरारोह
यदि शुक्र ( आषाढस्थः) पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में ( तालीरारोह मर्दने) आरोहण करे या मर्दन करता हुआ गमन करे तो ( वाम भूमि जले चारं प्रपीडयेत् ) सभी भूमिचर व जलचर आदि को पीड़ा देता है और (शांतिकरश्चमेघश्च) वर्षा भी शान्ति कर होती है।
मर्दने ।। १३३ ।।