Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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| भद्रबाहु संहिता
संव्यात्रभुपसेवानो भवेयं सोमशर्मणः।
सोमं च सोमजं चैव सोमपाश्वं च हिंसति ॥१०१॥ (संव्यानमुपसेवानो) बांयी ओर से शुक्र गमन करे तो (भवेयं सोमशर्मण:) सोम और शर्मा नामधारियों के लिये कल्याणकारी होता है (सोमं च सोमजं चैव) सोम-सोम से उत्पन्न (सोमपाश्व च हिंसति) और सोमपार्श्व की हिंसा करता है।
भावार्थ-अगर बांयी ओर से शुक्र का गमन हो तो सोम और शर्माओं के लिये कल्याणकारी होता है, सोम से उत्पन्न सोमपार्श्व की हिंसा करता है।। १०१॥
वत्सा विदेहजिह्माश्च वसा मद्रास्तथोरगाः।
पीड्यन्ते ये च तद्भक्ताः सन्ध्यानमारोहेत् यथा ॥१०२॥ (वत्सा) वत्स (विदेह) विदेह (जिहाश्च) कुन्तल (वसा) वसा (मद्रास्त्थोरगा:) मद्रा, उरगपुर आदि प्रदेश (सन्ध्यानमारोहेत् यथा) शुक्र के बांयी ओर जाने पर (तद्भक्ताः च ये पीड्यन्ते) उसके भक्त पीड़ित होते हैं।
___ भावार्थ- यदि शुक्र के बांयी ओर जाने पर वत्स, विदेह, कुन्तल, वसा, मद्रास, उरगपुर, आदि प्रदेश के भक्तों को पीड़ा होती है।। १०२॥
अलंकारोपघाताय यदा दक्षिणतो व्रजेत्।
सौम्ये सुराष्ट्रे च तदा वामगः परिहिंसति॥१०२॥ (यदा) जब (दक्षिणतोव्रजेत्) दक्षिण में शुक्र गमन करे तो (अलंकारोपघाताय) अलंकारों का घात होता है (वामगः) वहीं बांयी ओर गमन करे तो (सौम्ये सुराष्ट्र च तदा परिहिंसति) तब सौम्य सुराष्ट्र प्रदेश का घात करता है।
भावार्थ-जब दक्षिण में शुक्र गमन करे तो अलंकारों का घात होता है वहीं शुक्र बांयी ओर गमन करे तो सौम्य सौराष्ट्र प्रदेश का घात करता है।। १०२॥
आद्रा हत्वा निवर्तेत यदि शुक्रः कदाचन।
संग्रामास्तत्र जायन्ते मांश शोणितकईमाः ।। १०४॥ (यदि) यदि (शुक्रः) शुक्र (कदाचन) कदाचित (आद्रौहत्वानिवर्तेत्) आर्द्रा