Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पञ्चदशोऽध्यायः
नक्षत्र का घात करे तो (तन्त्र ) वहाँ पर (मांश शोणित कर्द्दमाः) मांस रक्त का कीचड़ करने वाला (संग्रामाः जायन्ते) संग्राम होता है।
भावार्थ--- अगर शुक्र आर्द्रा नक्षत्र का घात कर परिवर्तित करे तो मांस, रक्त कीचड़ करने वाला संग्राम वहाँ पर होता है ॥ १०४ ॥
तैलिका: सारिकाश्चान्तं चामुण्डामांसिकास्तथा । आषण्डाः क्रूरकर्माणः पीडयन्ते ताद्दशेन यत् ॥ १०५ ॥
( ताशेन यत् ) उसी प्रकार शुक्र के होने से (तैलिकाः सारिकाश्चान्तं) तैली, सैनिक, सारिका, (चामुण्डामांसिकास्तथा ) तथा, चामुण्ड, मांसिक ( आषण्डाः क्रूर कर्माणः ) इस प्रकार क्रूर कर्म करने वाले (पीडयन्ते) पीड़ित होते हैं ।
भावार्थ — उसी प्रकार शुक्र के होने पर (तैली, सैनिक, सारिक चमार, इस प्रकार के क्रूर कर्म करने वाले पीड़ा को प्राप्त होते हैं ॥ १०५ ॥
माँसिक )
दक्षिणेन यदा गच्छेद् द्रोणमेधं तदा दिशेत् । वामगो रुद्र कर्माणि भार्गवः परिहिंसति ॥ १०६ ॥
( यदा भार्गवः) जब शुक्र (दक्षिणेन गच्छेद्) दक्षिण से गमन करे तो (द्रोणमेघं तदादिशेत्) एक द्रोण प्रमाण जल की वर्षा होती है (वामगो) और बांयी ओर शुक्र गमन करे तो ( रुद्र कर्माणिपरि सति) रोद्र कर्म करने वालों की हिंसा हो है ।
भावार्थ-जब शुक्र दक्षिण से गमन करे तो पानी एक द्रोण प्रमाण वर्षा होती है, और बांयी ओर गमन करे तो क्रूर कर्म करने वालों की हिंसा होती है ॥ १०६ ॥ रोहेद्गाश्च
पुनर्वसुं यदा
गोजीविनस्तथा ।
हासं प्रहासं राष्ट्रं च विदर्भान् दासकांस्तथा ॥ १०७ ॥
( यदा) जब शुक्र ( पुनर्वसुं ) पुनर्वसु नक्षत्र में ( रोहेद्गाश्च) आरोहण करे तो ( गोजीविनस्तथा ) गायों का धन्धा करने वालों का ( हासं प्रहासं राष्ट्रं च ) हास - प्रहास होता है राष्ट्र में और (विदर्भान् दासकांस्तथा ) विदर्भ में दासों को प्रशन्नता प्राप्त
होती है।