Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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मागध का राजा जीतता है (मध्यदेशेषु) मध्यदेशमें (सुभिक्षं क्षेममारोग्यं जायते) सुभक्षि क्षेम और निरोगता का बढ़ाता है।
भावार्थ-यदि उपर्युक्त शुक्र पूर्व में हो तो, शीर और कलिङ्ग देश के मागधराजा जीतता है तथा मध्यमें हो तो सुभिक्ष, क्षेम, निरोगता बढ़ती है।। १६॥
यदाचान्ये तिरोहन्ति तत्रस्थं भार्गवं ग्रहाः । कुण्डानि अङ्गा वधयः क्षत्रियाः लम्बशाकुनाः ।। १७॥ धार्मिका: सूर सेनाश्च किराता मांससेवकाः ।
यवना भिल्लदेशाश्च प्राचीनाश्चीन देशजाः ॥१८॥ (यदा) जब (अन्ये) अन्य (ग्रहा:) ग्रह (भार्गव) शुक्रको (तत्रस्थ) वहाँ पर (तिरोहन्ति) तिरोहित करते हैं तो (कुण्डानि अङ्गा) विदर्भ अङ्ग देशके (क्षत्रियाः) क्षत्रिय (लम्बशाकुना:) लवादिपक्षियों का वध करते है, (धार्मिकाः सूरसेनाश्च) धार्मिक सूरसेन और (किराता) किरात वर्ग (मासंसेवका:) मांस भोजीवर्ग (यवना) यवन देशवासी, (भिल्लदेशाच) भिल्ल देश के वासियों को (प्राचीना चीनदेशजा:) और प्राचीन चीन देशवासियों को शुक्र की पीड़ा होती है।
भावार्थ-जब अन्य ग्रह शुक्र को आच्छादित करे तो विदर्भ अंग देश के क्षत्रिय लम्बपक्षियों का वध करते हैं, धार्मिक सूरसेनवासी, मांसहार करने वाले किरात, यवन, भील चीन देश वासियोंको शुक्रकी पीड़ा होती है।। १७-१८॥
द्वितीयमण्डले शुक्रो यदास्तं यात्युदेति वा।
शारदस्योपघाताय विषमां वृष्टिमादिशेत् ।। १९॥ (यदा) जब (द्वितीयमण्डले शुक्रो) द्वितीयमण्डल में शुक्र (अस्तं यात्युदेति वा) अस्त ही या उदय हो तो (शारदस्ययघाताय) शरदऋतु के फल नष्ट हो जाते हैं (वृष्टिं विषमां आदिशेत्) और वर्षा हीनाधिक होती हैं।
भावार्थ-जब द्वितीय मण्डल में शुक्र अस्त हो तो शरद ऋतु के फलादि सब नष्ट हो जाते हैं और वर्षा हीनाधिक होती है॥१९॥