Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पञ्चदशोऽध्यायः
तुका गमन को तो (मालेमन्तलीजारि जमीन में बोये हुए बीज (निरुपद्रवन जायन्ते) निरुपद्रव उत्पन्न होते हैं।
भावार्थ-इस प्रकार उपर्युक्त नक्षत्रों में यदि शुक्र गमन करे तो समझो जमीन में बोये हुए बीज निरुपद्रव उत्पन्न होते हैं।। ६९॥
निचयाश्च विनश्यन्ति खारी द्वादशिका भवेत्।
दानशीला नरा हृष्टा नागवीथीति संज्ञिता॥७॥ (नागवीथीति संज्ञिता) यदि नाग वीथी में शुक्र गमन करे तो (दानशीला नरा हृष्टा) दानशील मनुष्य प्रशन्न होते हैं। (निचयाश्च विनश्यन्ति) समुदायों की हानि होती हैं (खारी द्वादशिकाभवेत्) बारह खारी प्रमाण धान्य उत्पन्न होता है।
___ भावार्थ-यदि नागवीथी में शुक्र गमन करे तो समझो दानशील मनुष्य प्रशन्न रहते हैं, समुदायों की हानि होती है बारह खारी प्रमाण धान्य उत्पन्न होता है।। ७० ॥
एवमेव यदा शुक्रो व्रजत्युत्तरतस्तदा।
स्थले धान्यानि जायन्ते शोभन्ते जलजानि वा ।। ७१॥ (एवमेव यदा शुक्रो) इस प्रकार की वीथी में जब शुक्र (व्रजत्युत्तरतस्तदा) गमन करता है तो (स्थले धान्यानि जायन्ते) पृथ्वी पर धान्य होता है (शोभन्ते जलजानि वा) जल चर जीव शोभा पाते हैं।
भावार्थ-यदि उपर्युक्त वीथी में यदि शुक्र उत्तर दिशा में गमन करे तो समझो पृथ्वी पर धान्य बहुत होता है और जलचर जीव आनन्दित होते हैं॥७१ ।।
सर्वोत्तरा नागवीथी सर्वदक्षिणतोऽग्निजा।
गोवीथी मध्यमा ज्ञेया मार्गश्चैवं त्रयः स्मृताः॥७२॥ (सर्वोत्तरा नागवीथी) सन उत्तर नागवीथि है (सर्वदक्षिणतोऽग्निजा) वैश्वानर वीथी दक्षिण (गोवीथी मध्यमा ज्ञेया) गोवीर्थी मध्यम जानना चाहिये (मार्गश्चैवं त्रय: स्मृताः) इस प्रकार यह तीन मार्ग जानना चाहिये।
भावार्थ-वीथीयों के तीन मार्ग है-सब उत्तर नागवीथि, वैश्वानर वीथि दक्षिण और गोवीथि मध्यम जानना चाहिये॥७२॥