Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता ।
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यदा चान्ये ग्रहा यान्ति गैरवा म्लेच्छासकुलाः।
टणाश्च पुलिन्दाश्च किराताः सौरकर्णजाः ।। ३१॥ (यदाचान्यग्रहायान्ति) यदि शुक्र अन्य ग्रहों द्वारा आच्छादित हो तो (रौर वा) रौरव (म्लेच्छ सङ्घला) म्लेच्छ, संकुल, (टंकणाश्च) और टंकण देशवासी, (पुणिन्दाश्च) पुलिन्द (किराता:) भील, (सौरकर्णजाः) सौर कर्णज।
भावार्थ-यदि शुक्र अन्य ग्रहों द्वारा आच्छादित हो तो रौरव, मलेच्छ, संकुल और टंकण देशवासी, पुलिन्द, भील, सौर कर्णज और पूर्ववत् अन्य सभी दुर्भिक्ष से पीड़ित होते है।। ३१॥
पीड्यन्तेपूर्ववत्सर्वे दर्भिक्षेण भयेन च।
ऐक्ष्वाको नियते राजा शेषाणां क्षेममादिशेत्॥३२ ।। ये सब (पूर्ववत्सर्वे) पहले के समान ही (दुर्भिक्षेण भयेन च) दुर्भिक्ष और भय से (पीड्यन्ते) पीड़ित होते हैं और (ऐक्ष्वाको म्रियते राजा) इक्ष्वाकुंवासी राजा का मरण होता है (शेषाणां क्षेममादिशेत) शेष बाकी बच्चे सबको क्षेम होता है।
भावार्थ-उपर्युक्त कथनानुसार ये सब पहले के समान ही दुर्भिक्ष और भय से पीड़ित होते हैं और इक्ष्वाकुवासी राजा का मरण होता है बाकी बचे हुए को क्षेम होता है।। ३२॥
यदातुपञ्चमे शुक्रः कुर्यादस्तमनोदयौ।
अनावृष्टिभयं घोरं दुर्भिक्षं जनयेत् तदा ।। ३३॥ (यदातुपञ्चमे शुक्रः) जब पंचम मण्डल में शुक्र (कुर्यादस्तमनोदयौ) उदय अस्त हो तो समझो (तदा) तब (अनावृष्टि घोरं भयं) घोर अनावृष्टि का भय होगा (दुर्भिक्षं जनयेत्) दुर्भिक्ष को उत्पन्न करेगा।
भावार्थ-यदि पंचम मण्डल में शुक्र उदय या अस्त हो तो समझो वहाँ पर अनावृष्टि होगी, दुर्भिक्ष पड़ेगा ।। ३३ ।। ।
सर्वश्वेतं तदा धान्यं क्रेतव्यं सिद्धिमिच्छता। त्याज्यादेशास्तथा चेमे निर्ग्रन्थैः साधुवृत्तिभिः ॥ ३४।।