Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
तृतीये मण्डले शुक्रो यदास्तं यात्युदेति वा । तदा धान्यं सनिचयं पीडयन्ते व्यूह केतवः ॥ २४ ॥
यदि (तृतीयेमण्डले शुक्रो ) तीसरे मण्डल में स्थित शुक्र ( यदास्तं यात्युदेति वा ) उदय या अस्त हो तो, (तदा) तब ( धान्यं) धान्य (सनिचयं पीडयन्ते व्यूह केतवः) और उसका समूह पीड़ा को प्राप्त होता है।
भावार्थ-यदि तीसरे मण्डल में स्थित शुक्र अस्त हो या उदय हो तो समझो धान्यों का समूह नाश को प्राप्त हो जायगा ॥ २४ ॥
धाना:
कालकूटश्च
कुनाटाश्च
कुरुपाञ्चालाश्चातुवर्णश्च
पर्वतः ।
पीड्यते ॥ २५ ॥
४२४
वाट
ऋषय:
( वाट धानाः ) वाट धान ( कुनाटाश्च) कुनाट् ( कालकूटश्च पर्वतः ) कालकूट पर्वत (ऋषयः ) ऋषि ( कुरुपाञ्चाला:) कुरु, पाञ्चाल, (चातुर्वर्णश्च) और चातुवर्ण को ( पीड्यते) पीडा होती हैं।
भावार्थ - तृतीय मण्डल का उदय अत शुक्र, वाट धान, कुनाट् कालकूट पर्वत, ऋषि, कुरु, पाञ्चाल और चातुवर्ण को लोगों की पीड़ा देता है॥ २५ ॥
वाणिजश्चैव कालज्ञः पण्या वासास्तथाऽश्मकाः । अवन्तिश्चापरान्ताश्च सपल्या: स चराचराः ।। २६॥ पीडयन्ते भयेनाथ क्षुधारोगेण चार्दिताः । महान्तश्शवराचैव पारसीकास्तथावनाः ॥ २७ ॥
(वाणिजश्चैवकालज्ञः) व्यापारी, ज्योतिषि, (पण्या) दुकानदार (वास्तथाऽश्मका) वनवासी, ऋषिमुनि, (अवन्तीश्चापन्ताश्च) अवन्ति निवासी, विपरीत दिशा में रहने वाले, (सपल्या: स चराचराः) गोमांस भक्षी शवरादी वासी को भी ( पीडयन्ते) पीडा होती है ( भयेनाथ क्षुधारोगेणचार्दिताः) भय और क्षुधा रोग भी पीड़ित होते हैं ( महान्तश्शवराश्चैव ) महान शवरादिक भी और (पारसीका: ) पारसी लोग (सयावना) और यवन लोग भी पीड़ित होते हैं।
भावार्थ - उपर्युक्त मण्डल हो तो व्यापारी, ज्योतिषि, दुकानदार, वनवासी,