Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
( नागवीथीति विज्ञेया) ये नागवीथी की संज्ञा वाले जानो, (रोहिण्याद्रामृगशिर) रोहिणी, आर्द्रा, मृगशिर, (गजवीथीति निर्दिशेत् ) ये तीन नक्षत्र गज वीथी वाले हैं ऐसा निर्देश किया है ।।
भावार्थ — नागविधि के तीन नक्षत्र जानो— अश्विनी, भरणी, कृत्तिका । गजवीथि के भी तीन नक्षत्र है— रोहिणी, आद्री, मृगशिर ॥ ४५ ॥
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ऐरावणपथं विन्द्यात् पुष्याऽऽश्लेषा पुनर्वसुः । फाल्गुनौ च मघा चैव वृष वीथीति संज्ञिता ॥ ४९ ॥ (पुष्याऽऽश्लेषा) पुष्य, आश्लेषा ( पुनर्वसुः ) पुनर्वसुः (ऐरावणपथं विन्द्यात्) ऐरावण पथ वाले जानो (फाल्गुनी च ) पूर्वाफाल्गुनी और (मघा ) मघा (चैत्र) उत्तराफाल्गुनी को (वृषवीधिति संज्ञितः) वृष विधि वाली संज्ञा है ।
भावार्थ — ऐरावण वीथी के नक्षत्र तीन है— पुष्य, आश्लेषा, पुनर्वसु । वृषवीथी के तीन नक्षत्र हैं—पूर्वफाल्गुनी, मघा और उत्तराफाल्गुनी ॥ ४६ ॥
गोवीथी रेवती चैव द्वे च प्रोष्ठपदे तथा । जरद्रवपथं विन्द्याच्छवणे वसुवारुणे ।। ४७ ।।
( रेवती चैव द्वे च प्रोष्ठपदे तथा ) तथा, रेवती और पूर्वाभाद्रपद उत्तरापद (गोवीथी ) गोवीति संज्ञा वाले नक्षत्र हैं (छवणे वसुवारुणे ) श्रवण, धनिष्ठा और शतभिखा (जरद्रवपथं विन्द्यात्) जरद्रववीथि की संज्ञा वाले हैं।
भावार्थ -- गोवीथि संज्ञा वाले नक्षत्र रेवती, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और जरद्रव वीथी की संज्ञा वाले नक्षत्र - श्रवण, धनिष्ठा, शतभिखा ॥ ४७ ॥
अजवीथी विशाखा च चित्रा स्वाति: करस्तथा । ज्येष्ठा मूलाऽनुराधासु मृग वीथिति संज्ञिता ॥ ४८ ॥ अभिजिद् द्वे तथाषाढे वैश्वानरपथ: स्मृतः । शुक्रस्याग्रगताद्वर्णात् संस्थानाच्चफलं वदेत् ॥ ४९ ॥
(विशाखा च चित्रा स्वाति: करस्तथा ) विशाखा, चित्रा, स्वाति, (अजवीथी) अजवीथी वाले हैं (ज्येष्ठामूलाऽनुराधासु) ज्येष्ठामूला, अनुराधा की संज्ञा (मृगवीथी