Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
तथा (राजानः क्षत्रियाः) राजा और क्षत्रियों के (उग्रभोगाश्च) उग्रभोगपदार्थों के निमित्त (पीड्यन्ते) पीड़ा को प्राप्त होते है (धननाशो विनायकः) और धन का नाश हो जाता है।
भावार्थ-पानी के बिना धान्यों के अंकुर सूख जाते हैं तथा राजा और क्षत्रियों के भोगपभोग पदार्थों को पीड़ा होती है सम्पूर्ण धन का नाश हो जाता है॥५२॥
वैश्वानरपथो नामा यदा हेमन्तग्रीष्मयोः।
मारुताऽग्निभयं कुर्यात् वारी च चतुःषष्टिकाम्॥५३॥ (यदा) जब (वैश्वानरपथो) वैश्वानर विथी में शुक्र (हेमन्तग्रीष्मयोः) हेमन्त ऋतु और ग्रीष्म ऋतु के अन्दर गमन करे तो समझो (मारुताऽग्निभयं कुर्यात्) वायु का अनि क हा , (२.६ च चतुःषष्टिकाम्) और वर्षा भी एक आढ़क प्रमाण वर्षा होती है।
भावार्थ-जब वैश्वानर वीथि में शुक्र का गमन हेमन्त ऋतु वा ग्रीष्म ऋतु में हो तो समझो अग्नि भय और वायु भय होगा, पानी भी एक आढ़क प्रमाण वर्षा होगी॥५३॥
एतेषामेव मध्येन यदा गच्छति भार्गवः।
विषमं वर्षमाख्याति स्थले बीजानि वापयेत्॥५४॥ (यदा) जब (एतेषामेवमध्येन) इनके मध्य में होकर (भार्गवगच्छति) शुक्र जाता है तो (वर्षविषमंमाख्याति) वह वर्ष विषम है ऐसा कहना चाहिये (स्थले बीजानि वापयेत्) पृथ्वी में बीज बोना चाहिये।।
___ भावार्थ-जब इनके मध्य में होकर शुक्र जाता है तो वह वर्ष विषम रहेगा, और बीज पृथ्वी में बोना चाहिये।। ५४ ।।
खारी द्वात्रिंशिका ज्ञेया मृगवीथीति संज्ञिता। व्याधयः त्रिषुविज्ञेयास्तथा चरति भार्गवे॥५५॥