Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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पञ्चदशोऽध्यायः
अहिच्छत्रं च कच्छं च सूर्यावर्त च पीडयेत्।
ततोत्पात निवासानां देशानां क्षयमादिशेत् ॥२०॥ (अहिच्छत्रं च कच्छंच) अहिच्छत्र देश और कच्छ देश (सूर्यवर्त च पीडयेत) सूर्यावर्त को भी पीड़ा होती है और (ततोत्पातनिवासानां) उससे उत्पात देश वासियों का (देशानां क्षयमादिशेत्) क्षय होता है।
भावार्थ-अहिच्छत्र वासियों को व कच्छ देशवासियों को सूर्यावत वालों को पीड़ा होती है और शुक्र के उत्पात वाले देशवासियों का क्षय होता है॥२० ।।
यदा वाऽन्ये तिरोहन्ति तत्रस्थं भार्गवं ग्रहाः । निषादाः पाण्डवाम्लेच्छा: सङ्कुलस्थाश्च साधवः ।। २१॥ कौण्डजा: पुरुषादाश्चशिल्पिनो बर्बरा: शकाः । वाहीका यवनाश्चैव मण्डूकाः केकरास्तथा ।। २२॥ पाञ्चाला: कुरवश्चैव पीड्यन्ते सयुगन्धरा: (गान्धाराः)।
एकमण्डलसंयुक्ते भार्गवे पीडितेफलम्॥२३॥ (यदा) जब द्वितीय मण्डल स्थित (भार्गवं) शुक्र को (वाऽन्ये) अन्य (ग्रहाः) ग्रह (तत्रस्थं तिरोहन्ति) वहाँ पर तिरोहित करते हैं तो, (निषादा:) निषाद (पाण्डवाम्लेच्छा:) पाण्डव, म्लेच्छ, (सङ्कुलस्थाश्च) कुल और (साधव:) साधु (कौण्डजाः) कोण्डेय (पुरुषादाश्च) पुरुषार्थी (शिल्पिनो) शिल्पि (बर्बरा) बर्बर, (शकाः) शक (वाहीका) वाहिका, (यवनाश्चैव) यवन, (मण्डूकाः) मण्डूक (केकरास्तथा) केकर तथा (पाञ्चाला:) पाञ्चाल, (कुरवश्चैव) कौरव (सयुगन्धरा) व गांधार देश को पीड़ा होती हैं (एकमण्डलसंयुक्ते) यह एक मण्डल शुक्र से संयुक्त (भार्गवे) शुक्र के (पीडितेफलम्) पीडा होना फल है।
भावार्थ-जब द्वितीय मण्डल में स्थित शुक्र को अन्य ग्रह आच्छादित करे तो समझो निषाद, पाण्डव, म्लेच्छ, संकुल, साधु, कोण्डेज, पुरुषार्थी, शिल्पी, बर्बर, शक, वाहिक, यवन, मण्डूका, केकर, पाञ्चाल, कौरव व गांधार देशादिक के लोग पीड़ित होते हैं यह एकमण्डल स्थित शुक्र का फल है, इस प्रकार का शुक्र बको पीड़ा देता है॥२१-२२-२३॥