Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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और रेवती यह छठा मण्डल है। इन मण्डलों के नाम क्रमशः लाल, पुरुष, रोचन, ऊर्ध्व, चण्ड और तीक्ष्ण है॥९॥
प्रथमं च द्वितीयं च मध्यमे शुक्र मण्डले।
तृतीयं पञ्चमं चैव मण्डले साधुनिन्दिते ।। १०॥ (शुक्र) शुक्र के (प्रथमं च द्वितीयं च) प्रथम और द्वितीय (मण्डले) मण्डल (च मध्यमें) और मध्य हैं (तृतीयं पञ्चमं चैव मण्डले) तीसरा और पाँचवा मण्डल (साधुनिन्दिते) साधुओं के निन्दित हैं।
भावार्थ-शुक्र का प्रथम और द्वितीय मण्डल मध्यम है पञ्चम और तृतीय मण्डल साधुओं के द्वारा निन्दित है।
चतुर्थ चैव षष्टं च मण्डले प्रवरे स्मृते।
आद्ये द्वे मध्यमे विन्द्यानिन्दिते त्रिकपञ्चमे॥११ ।। (चतुर्थं चैव षष्टं च) चौथा और छठा (मण्डले प्रवरे स्मृते) मण्डल उत्तम हैं (आद्ये द्वे मध्यमे विन्द्यान्) आदिके दो मध्यम मण्डल है (त्रिकपञ्चमे निन्दिते) तीसरा और पांचवाँ निन्दित है
भावार्थ-चतुर्थ और षष्ठ मण्डल उत्तम है आदि के दो मध्यम है तीसरे और पाँचवे मण्डल निन्दित हैं।।११।।।
श्रेष्ठे चतुर्थषष्ठे च मण्डले भार्गवस्य हि।
शुक्लपक्षे प्रशस्येत् सर्वेष्वस्तमनोदये।। १२॥ (शुक्लपक्षे) शुक्ल पक्ष में अनुदित (अस्तं) अस्त (भार्गवस्यहि) शुक्र के (चतुर्थषष्टे च मण्डले श्रेष्ठे सर्वे प्रशस्येत्) चतुर्थ और षष्ठ जो मण्डल है उसको सर्व प्रकार से श्रेष्ठ माना गया है। - भावार्थ-शुक्लपक्ष में कहे गये अस्त शुक्र के चौथे और छठे मण्डल की प्रशंसा की गई है, उसीको प्रशस्त माना है॥१२॥
अथ गोमूत्र गतिमान् भार्गवो नाभिवर्षति। विकृतानि च वर्तन्ते सर्वमण्डलदुर्गतौ ।। १३॥