Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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परिवारमें किसीकी मृत्यु होती है। नगरमें धन-जनकी हानि होती है। प्रतिमा के हाथ भंग होने से तीसरे महीनेमें कष्ट और पांव भंग होनेसे सातवें महीनेमें कष्ट होता है। हाथ और पौवके भंग होनेका फल नगरके साथ नगरके प्रासक, मुखिया एवं पंचायतके प्रमुखको भी भोगना पड़ता है। प्रतिमा का अचनाक भंग होना अत्यन्त अशुभ है। यदि रखी हुई प्रतिमा स्वयमेव ही मध्याह्न या प्रात:कालमें भंग हो जाय तो उस नगरमें तीन महीनेके उपरान्त महान् रोग या संक्रामक रोग फैलते हैं। विशेष रूपसे हैजा, प्लेग एवं इनफ्ल्युएंजा की उत्पत्ति होती है। पशुओंमें भी रोग उत्पन्न होता है।
यदि स्थिर प्रतिमा अपने स्थानसे हटकर दूसरी जगह पहुँच जाय या चलती हुई मालूम पड़े तो तीसरे महीने अचानक विपत्ति आती है। उस नगर या प्रदेश के प्रमुख अधिकारीको मृत्युतुल्य कष्ट भोगना पड़ता है। जनसाधारणको भी आधि-व्याधिजन्य कष्ट उठाना पड़ता है। यदि प्रतिमा सिंहासनसे से नीचे उतर जावे अथवा सिंहासनसे नीचे गिर जाये तो उस प्रदेशके प्रमुखकी मृत्यु होती है। उस प्रदेशमें अकाल, महामारी और वर्षाभाव रहता है। यदि उपर्युक्त उत्पात लगातार सात दिन या पन्द्रह दिन तक हों तो निश्चयत: प्रतिपादित फलकी प्राप्ति होती है। यदि एकाध दिन उत्पात होकर शान्त हो गया तो पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। यदि प्रतिमा जीभ निकालकर कई दिनों तक रोती हुई दिखलाई पड़े तो जिस नगरमें यह घटना घटती है, उस नगरमें अत्यन्त उपद्रव होता है। प्रशासक और प्रशास्योंमें झगड़ा होता है। धन-धान्यकी क्षति होती है। चोर और डाकुओंका उपद्रव अधिक बढ़ता है। संग्राम, मारकाट एवं संघर्षकी स्थिति बढ़ती जाती है। प्रतिमा का रोना राजा, मन्त्री या किसी महान् नेताकी मृत्युका सूचक; हँसना पारस्परिक विद्वेष संघर्ष एवं कलहका सूचक; चलना और कॉपना बीमारी, संघर्ष, कलह, विषाद,
आपसी फूट एवं गोलाकार चक्कर काटना भय, विद्वेष, सम्मानहानि तथा देशकी धन-जन हानिका सूचक है। प्रतिमाका हिलना तथा रंग बदलना अनिष्ट सूचक एवं तीन महीनोंमें नाना प्रकारके कष्टोंका सूचक अवगत करना चाहिए। प्रतिमाका पसीजना अग्निभय, चोरभय एवं महामारीका सूचक है। धुंआ सहित प्रतिमासे पसीना निकले तो जिस प्रदेशमें यह घटना घटित होती है, उससे सौ कोशकी दूरीमें चारों