Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्याय:
ओर धन-जनकी क्षति होती है। अतिवृष्यि या अनावृष्टिके कारण जनताको महान् कष्ट होता है।
तीर्थंकरकी प्रतिमासे पसीना निकलनः धार्मिक विद्वेष एवं समर्षकी सूचना देता है। मुनि और श्रावक दोनोंपर किसी प्रकारकी विपत्ति आती है तथा दोनोंको विधर्मियों द्वारा उपसर्ग सहन करना पड़ता है। अकाल और अवर्षणकी स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है। यदि शिवकी प्रतिमासे पसीना निकले तो ब्राह्मणोंको कष्ट, कुबेरकी प्रतिमासे पसीना निकले तो वैश्यों को कष्ट, कामदेवकी प्रतिमासे पसीना निकले तो आगमकी हानि, कृष्ण की प्रतिमासे पसीना निकले तो सभी जातियोंको कष्ट; सिद्ध और बौद्ध की प्रतिमाओंसे धुंआ सहित पसीना निकले तो उस प्रदेशके ऊपर महान् कष्ट, चण्डिका देवीकी प्रतिमा में से पसीना निकले तो स्त्रियोंको कष्ट, बाराही देवीकी प्रतिमासे पसीना निकले तो हाथियोंका ध्वंस; नागिनी देवीकी प्रतिमासे धुंआ सहित पसीना निकले तो गर्भनाश; रामकी प्रतिमा से पसीना निकले तो देशमें महान् उपद्रव, लूट-पाट, धननाश; सीता या पार्वतीकी प्रतिमासे पसीना निकले तो नारी-समाजको महान् कष्ट एवं सूर्यकी प्रतिमासे पसीना निकले तो संसारको अत्यधिक कष्ट और उपद्रव सहन करने पड़ते हैं। यदि तीर्थङ्करकी प्रतिमा भग्न हो और उससे अग्निकी लपट या रक्तकी धारा निकलती हुई दिखलाई पड़े तो संसारमें मार-काट निश्चय होती है। आपसमें मार-काट हुए बिना किसीको भी शान्ति नहीं मिलती है। किसी भी देवकी प्रतिमाका भंग होना, फूटना व हँसना, चलना आदि अशुभकारक है। उक्त क्रियाएँ एक सप्ताह तक लगातार होती हों तो निश्चय तीन महीनके भीतर अनिष्टकारक फल प्राप्त होता है। ग्रहोंकी प्रतिमाएँ, चौबीस शासन देवोंका शासन देवियोंकी प्रतिमाएँ क्षेत्रपाल और दिक्पालोंकी प्रतिमाओंमें उक्त प्रकारकी विकृति होनेसे व्याधि, धनहानि, मरण एवं अनेक प्रकारकी व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं। देवकुमार, देवकुमारी, देववनिता एवं देवदूतोंके जो विकार उत्पन्न होते हैं, वे समाजमें अनेक प्रकारकी हानि पहुँचाते हैं। देवोंके प्रासाद, भवन, चैत्यालय, वेदिका, तोरण, केतु आदिके जलने या बिजली द्वारा अग्नि प्राप्त होनेसे उस प्रदेशमें अत्यन्त अनिष्टकर क्रियाएँ होती है। उक्त क्रियाओंका फल छ: महीनोंमें प्राप्त होता है। भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और कल्पवासी देवोंके प्रकृति विपर्दय लोगोंके नाना प्रकारके कष्टोंका सामना करना पड़ता है।