Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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तो महामारी फैलती है। जल का रूप, रस, गन्ध और स्पर्श में परिवर्तन हो जाय तो महामारी की सूचना समझनी चाहिए।
स्त्रियोंका प्रसव विकार होना, उनके एक साथ तीन-चार बच्चोंका पैदा करना, उत्पन्न हुए बच्चोंकी आकृति पशुओं और पक्षियोंके समान हो तो, जिन कल में यह घटना घटित होती है, उस कुल का विनाश, जिस गाँव या नगरमें घटना घटित होती है, उस गाँव या नगरमें महामारी, अवर्षण और अशान्ति रहती है। इस प्रकारके उत्पातका फल ६ महीनेसे लेकर एक वर्ष तक प्राप्त होता है। घोड़ी, ऊँटनी, भैंस, गाय और हथिनी एक साथ दो बच्चे पैदा करें तो इनकी मृत्यु हो जाती है तथा उस नगरमें मारकाट होती है। एकजाति का पशु दूसरे जातिके पशुके साथ मैथुन करे तो अमंगल होता है, दो बैन परस्परमें स्तनपान करें तथा कुत्ता गायके बछड़ेका स्तनपान करे तो महान् अमंगल होता है। पशुओंके विपरीत आचरणसे भी अनिष्टकी आशंका समझनी चाहिए। यदि दो स्त्री जातिके प्राणी आपसमें मैथुन करें तो भय, स्तनपान अकारण करें तो हानि, दुर्भिक्ष एवं धन विनाश होता है।
रथ, मोटर, बैल आदि की सवारी बिना चलाये चलने लगे और बिना किसी खराबीके चलानेपर भी न चले तथा सवारियाँ चलाने पर भूमिमें गढ़ जाय तो अशुभ होता है। बिना बजाये तुरहीका शब्द होने लगे, और बजाने पर बिना किसी प्रकारकी खराबीके तुरही शब्द न करे तो इससे परचक्रका आगमन होता है, अथवा शासकका परिवर्तन होता है। नेताओंमें मतभेद होता है और वे आपसमें झगड़ते हैं। यदि पवन स्वयं ही साँय-सांय की विकृत ध्वनि करता हुआ चले तथा पवनसे घोर दुर्गन्ध आती हो तो भय होता है, प्रजाका विनाश होता है तथा दुर्भिक्ष भी होता है। परके पालतू पक्षिगण वनमें जावें और बनैले पक्षी निर्भय होकर पुरमें प्रवेश करें, दिनमें चरनेवाले रात्रिमें अथवा रात्रिके चरने वाले दिनमें प्रवेश करें तथा दोनों सन्ध्याओंमें मृग और पक्षी मण्डल बाँधकर एकत्रित हों तो भय, मरण, महामारी एवं धान्यका विनाश होता है। सूर्यकी ओर मुँहकर गीदड़ रोवें, कबूतर या उल्लू दिनमें राजभवनमें प्रवेश करे, प्रदोषके समय मृर्गा शब्द करे, हेमन्त आदि ऋतुओंमें कोयल बोले, आकाशमें बाज आदि पक्षियोंका प्रतिलोम मण्डल विचरण करे तो भयदायी होता