Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
४०७
चतुर्दशोऽध्यायः ।
-.
--
है। अस्त्र-शस्त्रों का जलना, उनके शब्द होना, जलते समय अग्नि से शब्द होना तथा ईधन के बिना जलाये अग्निका जल जाना अनिष्ट सूचक है। इस प्रकारके उत्पातमें किसी आत्मीयकी मृत्यु होती है। असमयमें वृक्षोंमें फल-फूलका आना, वृक्षोंका हंसना, रोना, दूध निकलना आदि उत्पात धनक्षय, शिशुओंमें रोग तथा आपसमें झगड़ा होनेकी सूचना देते हैं। वृक्षोंसे मद्य निकले तो वाहनोंका नाश, रुधिर निकलनेसे संग्राम, शहद निकलनेसे रोग, तेल निकलनेसे दुर्भिक्ष, जल निकलनेसे भय और दुर्गन्धित पदार्थ निकलनेसे पशुक्षय होता है। अंकुर सूख जानेसे वीर्य और अन्नका नाश, रोगहीन वृक्ष अकारण सूख जायें तो सेनाका विनाश और अन्नक्षय, आप ही वृक्ष खड़े होकर उठ बैठे तो देवका भय, कुसमयमें फल-फूलोंका आना प्रशासक और नेताओंका विनाश, वृक्षोंसे ज्वाला और धुंआ निकले तो मनुष्यों का क्षय होता है। वृक्षोंसे मनुष्यके जैसा शब्द निकलता हुआ सुनाई पड़े तो अत्यन्त अशुभकारी होता है। इससे मनुष्यों में अनेक प्रकारकी बीमारियों फैलती है, जनतामें अनेक प्रकारसे अशान्ति आती है।
कमल आदि के एक काल में दो या तीन बालकी उत्पत्ति हो अथवा दो फूल या फल दिखलायी पड़े तो जिस जगह यह घटना घटित होती है, वहाँ के प्रशासक का मरण होता है। जिस किसान के खेत में यह निमित्त दिखलायी पड़ता है, उस की भी मृत्यु होती है। जिस गाँवमें यह उत्पात दिखलायी पड़ता है, उस गाँव में धन-धान्य के विनाश के साथ अनेक प्रकार के उपद्रव होते हैं। फल-फूलों में विकार का दिखलायी पड़ना, प्रकृति विरुद्ध फल-फूलों का दृष्टिगोचर होना ही उस स्थान की शान्ति को नष्ट करने वाला तथा आपस में संघर्ष उत्पन्न करने वाला है। शीत और ग्रीम में परिवर्तन हो जाने से अर्थात् शीत ऋतु में गर्मी और ग्रीष्म ऋतु में शीत पड़ने से अथवा सभी ऋतुओं में परस्पर परिवर्तन हो जानेसे दैवभय, राजभय, रोगभय और नाना प्रकार के कष्ट होते हैं। यदि नदियाँ नगर के निकटवर्ती स्थान को छोड़कर दूर हटकर बहने लगें तो उन नगरों की आबादी घट जाती हैं, वहाँ अनेक प्रकार के रोग फैलते हैं। यदि नदियों का जल विकृत हो जाय, वह रुधिर, तेल, घी, शहद आदिकी गन्ध और आकृति के समान बहता हुआ दिखलायी पड़े तो भय, अशान्ति और धनक्षय होता है। कुओं से धूम निकलता हुआ दिखलायी पड़े, कुआँ का जल स्वयं ही खौलने लगे, रोने और गाने का शब्द जल से निकले
-
-