Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्यायः
भावार्थ यदि घोड़े अकड़कर अपनी गर्दन को फैलाकर कर हँसे तो समझो युद्ध में विजय होगी ऐसा कहते है।। १७० ॥
श्रमणा ब्राह्मणा वृद्धा न पूज्यन्ते यथा पुरा।
सप्तमासात् परं यत्र भयमाख्यात्युपस्थितम्॥१७१॥ (यथा पुरा) जिस नगर में (श्रमणा ब्राह्मणा वृद्धा न पूज्यन्ते) श्रमण, ब्राह्मण और वृद्धों की पूजा न होती है तो (यत्र) वहाँ पर समझो (सप्तमासात् परं) सात महीने में (भयं) भय (आख्यात्युपस्तितम्) उपस्थित होगा ऐसा कहते हैं।
भावार्थ-जिस नगर में श्रमण, (निर्ग्रन्थ महासाधु) ब्राह्मण और वृद्धों की पूजा न होती हो तो समझो वहाँ पर सात महीने में भय उपस्थित होगा ऐसा कहते हैं॥१७१॥
अनाहतानि तूर्याणि नर्दन्ति विकृतं यदा।
षष्टे मासे नृपो वध्यः भयानि च तदाऽदिशेत् ॥१७२॥ (यदा) जब (अनाहता नितूर्याणि) बाजे अपने आप ही (विकृत) विकृत शब्द करते हुऐ (नन्ति) बजने लगे तो समझो (षष्टे मासे नृपोवध्यः) छह महीने में राजा मारा जाता है (भयानि च तदाऽऽदिशेत्) और भय भी उपस्थित होता है।
भावार्थ-जब बाजे अपने आप ही विकृत शब्द करते हुऐ बजने लगे तो समझो वहाँ पर छह महीने में ही राजा का मरण हो जायगा और भय भी उपस्थित होगा ॥१७२।।
कृत्तिकासु यदोत्पातो दीप्तायां दिशि दृश्यते।
आग्नेयीं वा समाश्रित्य त्रिपक्षादग्नितो भयम् ।। १७३॥ यदि (दीप्तायां दिशि) पूर्व दिशा में (कृत्तिकासु यदोत्पातो दृश्यते) कृत्तिका नक्षत्र में उत्पात दिखे तो (वा) वा (आग्नेयी) आग्नेय दिशा में उत्पात दिखे तो (समाश्रित्यत्रिपक्षादग्नितो भयम्) समझो डेढ़ महीने में वहाँ पर भय उपस्थित होगा।
भावार्थ-यदि पूर्व दिशा या आग्नेय दिशा में कृत्तिका नक्षत्र में कोई उत्पात दिखे तो डेढ़ महीने में उत्पात का भय उपस्थित होगा॥१७३ ।।