Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्याय:
(यदा) जब घोड़े (भूम्यां ग्रसित्वानासं तु) भूमि से घास को ग्रहण करते हुऐ (प्राङ्मुखाहेषन्ते) पूर्व की ओर मुँह करके हँसे (अश्वारोधाश्च बद्धाश्च) और घोड़ा का रोध ही बद्ध हो तो (तदा) तब (क्लिश्यतिक्षुद्भयम्) शुद्रभवों से क्लेश होगा।
भावार्थ-जब घोड़े अबरोधित होकर बद्ध रूप में पृथ्वी से घास तिनका मुँह में लेकर पूर्व की ओर मुँह करके हँसते हो तो प्रजा को शुद्र भय उत्पन्न होगा॥१६३॥
शरीरं केसरं पुच्छ यदा ज्वलति वाजिनः।
परचक्रं प्रयातं च देश भङ्गं च निर्दिशेत्॥१६४॥ (यदा) जब (वाजिनः) घोड़े के (शरीरं केशरं ज्वलति) शरीर के बाल जलते हुए दिखाई दे तो (परचक्रं प्रयातं च) पर शासन का आगमन होगा और देश (भा च निर्दिशेत्) देश के नष्ट होने का सूचक है।
भावार्थ-जब घोड़े के शरीर और बाल अपने आप ही जलने लगे तो परचक्र का भय होगा और देश का नाश हो जायगा॥ १६४॥
यदा बालाप्रक्षरन्ते पुच्छं चटपटायते।
वाजिनः सस्फुलिङ्गा वा तदाविन्द्यामहद्भयम्॥१६५॥ (यदा) जब (वाजिनः) घोड़े (वालाप्रक्षरन्ते) बाल गिरावे (पुच्छं चटपटायते) पूंछ को चटपटावे (वा) वा (वाजिन: सस्फुलिङ्गा) शरीर से स्फुलिङ्ग निकले तो (तदा) तब (महद्भयविद्याद्) महान् भय उपस्थित होगा।
भावार्थ-जब घोड़े अपने बाल गिराने लगे, पूंछ को चटपटावे और शरीर से स्फुलिंग निकलने लगे तो समझो महान भय उपस्थित होगा॥१६५ ॥
हेषन्ते तु तदा राज्ञः पूर्वाह्ने नागवाजिनः।
तदा सूर्यग्रहं विन्द्यादपराहे तु चन्द्रजम्॥१६६॥
जब (राज्ञः) राजा के (नाग वाजिनः) हाथी, घोड़े (पूर्वाह्ने) पूर्वाह्वे में (हेषन्ते) हँसते हो (तु) तो (तदा) तब (सूर्यग्रहं विन्द्याद्) सूर्य ग्रहण होगा ऐसा समझो (अपराह्ने तु चन्द्रजम्) अपराह्न में ऐसा हो तो चन्द्र ग्रहण समझो।
भावार्थ-जब राजा के हाथी, घोड़े पूर्वाह्न में हँसते हो तो सूर्य ग्रहण समझो और अपराह्न में हँसे तो चन्द्र ग्रहण समझो। १६६॥