Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्यायः
( यदा) जब (हया) घोड़े (विच्छिद्यमानारूक्षस्वरं हेषन्ते) टूटती हुई आवाज में रूक्ष स्वर से हँसते हैं और (हया) घोड़े (यत्र ) जहाँ पर (तदोत्पातं) ऐसे उत्पात दिखे तो (द्राजमृत्यवे निर्द्दिशे ) वहाँ पर राजा की मृत्यु का निर्देश कहना चाहिये । भावार्थ — जब घोड़े टूटी-फूटी आवाज में शब्द करे तो और जहाँ पर ऐसे उत्पात दिखाई दे तो समझो राजा की मृत्यु होगी ॥ १५६ ॥
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खर वद् भीमनादेन तदा विद्यात् पराजयम् । उत्तिष्ठन्ति निषीदन्ति विश्वसन्ति भ्रमन्ति च ॥ १५७ ॥
जब घोड़े ( खरवद् भीमनादेन ) गधे के समान भीम शब्द करे ( उतिष्ठन्ति ) खड़े हो (निषीदन्ति ) रेंके (विश्वसन्ति) बैठे (च) और ( भ्रमन्ति) दौड़े तो (तदा) तब ( पराजयम् विन्द्यात्) राजा की पराजय समझो ।
भावार्थ — जब घोड़े गधे के समान खड़े होकर शब्द करें, रेंके, बैठे और इधर-उधर दौड़े तो समझो राजा की पराजय होगी ॥ १५७ ॥
रोगार्त्ता इव हेषन्ते तदा विन्द्यात् पराजयम् । ऊर्ध्व मुखा विलोकन्ते विद्याः ज्जनपदे
भयम् ॥ १५८ ॥
यदि घोड़े (उर्ध्वमुखा विलोकन्ते ) ऊपर को देखे तो (जनपदे भयम् विद्यान्) जनपद को भय होगा, ( रोगार्त्ता इव हेवन्ते) रोगी के समान हँसते हैं तो ( तदा ) तब ( विन्द्यात् पराजयम् ) पराजय समझो ।
भावार्थ — यदि घोड़े ऊपर मुँह करके देखे तो समझो जनपदों को भय होगा और रोगी के समान हँसे तो समझो पराजय होगी ।। १५८ ।।
शान्ता प्रहृष्टा धर्मार्त्ता विचरन्ति यदा हयाः । बालानां वीक्ष्यमाणास्ते न ते ग्राह्या विपश्चितैः ॥ १५९ ॥
(यदा हयाः) जब घोड़े ( शान्ता प्रहृष्टा धर्मार्त्ता) शान्त, प्रशन्नचित्त और कमिक
( विचरन्ति ) विचरण करे (ते) और वे (बालानां वीक्ष्यमाणास्ते) स्त्रियों के द्वारा देखे जाते हो तो ( न ग्राह्यविपश्चितैः ) विद्वानों को कोई शुभाशुभ ग्रहण नहीं करना चाहिये ।