Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्यायः
कौआ, बगुलाओं के आकार का टूटे तो राजा का अग्र अध्यक्ष व पुरोहित का असत् फल होता है॥१४९ ।।
यदा भङो भवत्येषां तदब्रूयादसत् फलम्।
शिरो नाशाग्न कण्ठेन सानुस्वारं निशंसनैः ॥१५०॥ (यदा) जब (भगो) इस प्रकार का भङ्ग (भवत्येषां) हो जाने पर (तदा) तब (असत् फलम् ब्रूयात) असत फल होगा ऐसा बोले, (शिरो) सिर (नाशाग्र) नाक का अग्रभाग (कण्ठेन) कण्ठ से (सानुस्वार) शब्द होने से (निशंसनैः) ग्रहीत भोजन भी ग्राह्य नहीं होता है।
भावार्थ-जब इस प्रकार के दाँतों का भङ्ग हो जाय तो समझों राजा को असत् फल होगा, नाक का अग्रभाग, से कण्ठ से, सिर से शब्द निकले तो समझो ग्रहीत भोजन भी खाया नहीं जाता है।। १५० ।।
भक्षितं सञ्चितं यच्च न तद् ग्राह्यन्तु वाजिनाम्।
नाभ्यङ्गतो महोरस्कः कण्ठे वृत्तो यदेरितः ।।१५१ ।। जब (वाजिनाम्) घोड़ा (नाभ्यङ्गतो महोरस्क:) नाभि से लगाकर छातीतान (कण्ठेवृत्तो यदेरित:) कण्ठपर्यन्त ऊपर उठता हुआ शब्द करे (तद्) तब (भक्षितं सञ्चितं यच्च न ग्राह्यन्तु) संच्चित किया हुआ भी नहीं खाया जायगा!
भावार्थ-जब घोड़ा नाभि से लगाकर छाती तानता हुआ कण्ठ से शब्द करे तो ग्रहण किया हुआ भी नहीं खाया जायगा, ऐसा भय उपस्थित होगा ।। १५१।।
पार्वे तदाभयं ब्रूयात् प्रजानामशुभंकरम्।
अन्योन्यं समुदीक्षन्ते हेष्यस्थानगता हया॥१५२॥ (हया) घोड़ा (हेष्यस्थानगता) हँसने के साथ (अन्योन्यंसमुदीक्षन्ते) एक दूसरे को परस्पर देखे तो (तदा) तब (पार्वे भयं ब्रूयात्) पीछे से भय होगा ऐसा कहे (प्रजानामशुभंकरम्) प्रजा को अशुभ होगा।
भावार्थ-जब घोड़े परस्पर देखते हुए हंसते हो तो प्रजा को अशुभकारी और पीछे से भय उपस्थित होगा ।। १५२ ।।