Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्यायः
है तो (युगपद्) युगपद् (राष्ट्रं स नायकम्) देश व देश के नायकों का (घ्नन्ति) नाश करती है।
भावार्थ-जब महान भयंकर धुल की वृष्टि हो उल्का पतन हो बिजली की गड़गड़ाहट हो तो देश व देश के नायक का नाश हो जाता है।। १३०॥
रसाच विरसा यत्र नायकस्य च दूषणम्।
तुलामानस्य हसनं राष्ट्रनाशाय तद्भवेत्॥१३१॥ (रसाश्च विरसा यत्र) जहाँ पर रस विरस हो जाय तो (नायकस्य च दूषणम्) नायक को दोष लगता है (तुलामान्य हर तराजू के हरने पर रमाशाय जलत) राष्ट्र का नाश होता है।
भावार्थ-जहाँ पर अकस्मात् रस निरस हो जाय तो वहाँ के नायक को दूषण लगता है, और तराजू अपने आप ही हंसने लगे तो देश का नाश होता है॥१३१॥
शुक्लप्रतिपदि चन्द्रे समं भवति मण्डलम्।
भयङ्करं तदा तस्य नृपस्याथ न संशयः ॥ १३२ ॥ (शुक्ल प्रतिपदि चन्द्रे) शुक्ल पक्ष की द्वितीया या प्रतिपदा को (समं भवति मण्डलम्) दोनों शृंग बराबर रहता है तो (तदा) तब (तस्य) उस (नृपस्य) राजा को महा (भयङ्कर) भयंकर होता है (अथ न संशय:) इसमें सन्देह नहीं हैं।
भावार्थ-शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को चन्द्रमा के दोनों शृंग बराबर रहे तो राजा को भय उत्पन्न करता है।। १३२ ।।
समाभ्यां यदि शृङ्गाभ्यां यदा दृश्येत चन्द्रमाः।
धान्यं भवेत् तदा न्यूनं मन्द वृष्टिं विनिर्दिशेत्॥१३३।। (यदा) जब उसी दिन (चन्द्रमा:) चन्द्रमा के (शृङ्गांभ्यां) शृग दोनों (समाभ्यां) सम (दृश्येत्) दिखे तो (तदा) तब (धान्यं न्यूनं भवेत्) धान्य कम होगा और (मन्दवृष्टिं विनिर्दिशेत्) थोड़ी वर्षा होगी।
भावार्थयदि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का चन्द्रमा के शृंग समान हो तो धान्य थोड़ा होगा, वर्षा भी कम होगी।। १३३ ।।