Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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(यदा) जब (राज्ञो) राजा का (वेश्म द्वार) महल द्वार (शस्त्रगृह) शस्त्र गृह (तथा) तथा (देवगृह) देवता गृह (धूमायन्ते) धुएं से सहित दिखे तो (तदा) तब (राज्ञ: भरणमादिशेत्) राजा का मरण होगा ऐसा निर्देश किया गया है।
भावार्थ-जब राजा का महल द्वार, शस्त्र गृह, देवता गृह धुएं से सहित दिखे तो राजा का मरण होगा ऐसा कहा है॥११३ ।।
परियाऽर्गला कपाटं द्वारं रुन्धन्ति वा स्वयम्।
पुररोधस्तदा विन्द्यान्नैगमानां महद्भयम्॥११४॥ (वा) और (परिघा) बेडा (अर्गला) अर्गल (द्वारं कपाट) कपाट के द्वार (स्धन्ति स्वयम्) स्वयम् ही बन्द हो जाय तो समझो (तदा) तब (पुररोध:) नगर का निरोध होगा (नैगमानां महद्भयमूविद्यात्) और नगर को महान भय होगा।
भावार्थ-यदि बेडा, अर्गल, कपाट, द्वार अपने आप बन्द होते दिखाई पड़े तो समझो नगर का निरोध होगा और पुरोहितों को या वैद्य के व्याख्याता को महान् भय होगा॥११४॥
यदा द्वारेण नगरं शिवा प्रविशते दिवा।
वास्यमाना विकृता वा तदा राजवधो ध्रुवम्॥११५॥
(यदा) जब (नगर द्वारेण) नगर के द्वार से (दिवा) दिन में (वास्यमाना वा विकृता शिवा) विकृत या सिक्त हो सियार (प्रविशते) प्रवेश करे (तदा) तब (राजवधो ध्रुवम्) राजा का वध निश्चय से होगा।
भावार्थ-जब नगर के द्वार से लोमड़ी (सियार) दिन में विकृत रूप को पाकर सिक्त रूप होकर निकले तो समझो राजा का वध निश्चय से होगा ।। ११५ ।।
अन्तःपुरेषु द्वारेषु विष्णुमित्रे तथा पुरे।
अट्टालकेऽथ हद्देषु मधु लीनं विनाशयेत्।। ११६॥ (यदि) यदि (अन्तःपुरेषु) अन्तपुर के (द्वारेषु) द्वार में (तथा) तथा (विष्णुमित्रे पुरे) नगर में वा तीर्थ में (अट्टालकेऽथ) अट्टलिकामें (हट्टेषु) बाजार में सियार प्रवेश करे तो (मधु लीनं विनाशयेत्) सुख का विनाश होता हैं।