Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्याय:
भावार्थ-यदि सियारिन अन्त:पुर से, द्वार से, तीर्थ से, नगर से, अट्टालिका से व बाजार से निकले तो सुख का नाश होता है।।११६ ॥
धूमकेतुहतं मार्ग शुक्रश्चरति वै यदा।
तदा तु सप्तवर्षाणि महान्तमनयं वदेत्॥११७॥ (यदा) जब (शुक्रः) शुक्र (धूमकेतुहत) धूमकेतु के द्वारा आक्रान्त (मार्ग) मार्ग में (चरति पै) गमन करे तो (तदा) तब (तु) तो (सप्तवर्षाणि) सात वर्ष तक लगातार (महान्तमनयं वदेत्) महान अन्याय होगा।
भावार्थ:-जब शुक्र धूमकेतु के द्वारा आक्रान्त मार्ग में गमन करे तो सात वर्ष तक महान् भय होगा ॥११७॥
गुरुणा प्रहतं मार्ग यदा भौमः प्रपद्यते।
भयं सार्वजनिकं करोति बहुधा नृणाम् ।। ११८॥ (यदा) जब (गुरुणाप्रहतं मार्ग) गुरु के द्वारा प्रताडित मार्ग में (भौम:) मंगल (प्रपद्यते) गमन करे तो (सार्वजनिक भयं करोति) सार्वजनिक भय होता है (बहुधा नृणाम्) बहुधा मनुष्यों को होता है।
भावार्थ-जब गुरु के द्वारा प्रताड़ित मार्ग से मंगल गमन करे तो सार्वजनिक भय उत्पन्न होता है और ज्यादा से मनुष्यों को भय उत्पन्न होता है॥ ११८॥
भौमेनापि हतं मार्ग यदा सौरिः प्रपद्यते।
तदाऽपि शूद्र चौराणमनयं कुरुते नृणाम्॥ ११९॥ (यदा) जब (भौमेनापि हमार्ग) मंगल के द्वारा प्रताडित मार्ग से (सौरिः) शनि (प्रपद्यते) गमन करे तो (तदाऽपि) तो भी (शूद्र चौराणमन्यं कुरुते नृणाम्) शूद्रों व चोरों का अकल्याण होता हैं।
भावार्थ-जब मंगल के द्वारा प्रताडित मार्ग से शनि गमन करे तो शूद्र और चोरों के ऊपर आपत्ति आती है॥११९।।
सौरेण तु हतं मार्ग वाचस्पतिः प्रपद्यते। भयं सर्वजनानां तु करोति बहुधा तदा ॥१२०॥