Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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| भद्रबाहु संहिता |
परिवेषों का राष्ट्र सम्बन्धी फलादेश–चन्द्रमाका परिवेष मंगल, शनि और रविवारको आश्लेषा, विशाखा, भरणी, ज्येष्ठा, मूल और शतभिषा नक्षत्रमें काले वर्णका दिखलाई पड़े तो राष्ट्रके लिए अत्यन्त अशुभ सूचक होता है। इस प्रकारके परिवेषका फल राष्ट्रमें उपद्रव, घरेलू कलह, महामारी और नेताओंमें मतभेद तथा झगड़ोंके होने से राष्ट्रकी क्षति आदि समझना चाहिए। तीन मण्डल और पाँच मण्डलका परिवेष सभी प्रकारसे राष्ट्रकी क्षति करता है। यदि अनेक वर्णवाला दण्डाकार चन्द्र परिवेष मर्दन करता हुआ दिखलाई पड़े तो राष्ट्रके लिए अशुभ समझना चाहिए। इस प्रकारके परिवेषसे राष्ट्रके निवासियोंमें आपसी कलह एवं किसी विशेष प्रकारकी विपत्तिकी सूचना मिलती है। जिन देशोंमें पारस्परिक व्यापारिक समझौते होते हैं, वे भी इस प्रकारके परिवेष से भंग हो जाते हैं अत: परराष्ट्रका भय और आतङ्क व्याप्त हो जाता है। आर्थिक क्षति भी देशकी होती है। देशमें चोर, डाकुओंका अधिक आतंक बढ़ता है और देश की व्यापाररिक स्थिति असन्तुलित हो जाती है। रात्रिमें शुक्लपक्षके दिनोंमें जब मेघाच्छन्न आकाश हो, उन दिनों पूर्व दिशाको ओर बढ़ता हुआ चन्द्रपरिवेष दिखलाई पड़े और इस परिवेषका दक्षिणका कोण अधिक बड़ा और उत्तरवाला कोण अधिक छोटा भी मालूम पड़े तो इस परिवेषका फल भी राष्ट्र के लिए घातक समझना चाहिए इस प्रकार के परिवेष से राष्ट्र की प्रतिष्ठा में भी कमी आती है। तथा राष्ट्रकी सम्पत्ति भी घटती हुई दिखलाई पड़ती है। अच्छे कार्य राष्ट्र हितके लिए नहीं हो पाते हैं, केवल ऐसे ही कार्य होते रहते हैं, जिनसे राष्ट्रमें महान अशान्ति होती है। राष्ट्रके किसी अच्छे कर्णधारकी मृत्यु होती है, जिससे राष्ट्रमें महान् अशान्ति छा जाती है। प्रशासकोंमें भी मतभेद होता है, देश के प्रमुख-प्रमुख शासक अपने-अपने अहंभावकी पुष्टिके लिए विरोध करते हैं, जिससे राष्ट्रमें अशान्ति होती है। मध्यरात्रिमें निरभ्र आकाशमें दक्षिण दिशाकी
ओर से विचित्र वर्णका परिवेष उत्पन्न होकर चन्द्रमाको वेष्टित करे तथा इस मण्डलमें चन्द्रमाका उस दिनका नक्षत्र भी वेष्टित हो तो इस प्रकारका परिवेष राष्ट्र उत्थानका सूचक होता है। कलाकारोंके लिए यह परिवेष उन्नतिसूचक है। देशमें कल-कलकारखानोंकी उन्नति होती है। नदियोंपर पुल बाँधनेका कार्यं विशेष रूपसे होता है। धन-धान्यकी उत्पत्ति विपुल परिमाणमें होती है और राष्ट्रमें चारों ओर समृद्धि और शान्ति व्याप्त हो जाती है।