Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
(च) और ( प्रशस्तानां ) प्रशस्त होता है। (च) और (दर्शनम्) अच्छी वस्तुओं का दर्शन भी ( प्रशस्तानां ) प्रशस्त है (पूर्ण विजयमाख्याति) पूर्ण विजय को देने वाला
है ।
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भावार्थ — सम्पूर्ण शकुनों में स्वर ज्ञान बहुत शुभ है और वस्तुओं का दर्शन बहुत ही प्रशस्त हैं राजा के विजय की सूचना देता है ॥ १०२ ॥
फलं वा यदि वा पुष्पं ददते यस्य पादपः । अकालजं प्रयातस्य सा यात्रा विधीयते ॥ १०३ ॥ (यस्य) जिस (पादपः) वृक्ष पर ( अकालजं) अकालमें ही, ( फलं) फल (वा) और (पुष्पं ) पुष्प (यदि ) यदि (ददते) आ जावे तो ( प्रयातस्य ) प्रयाणकारी का (सा) वह (यात्रा) यात्रा (न) नहीं ( विधीयते ) करनी चाहिये ।
भावार्थ — जिन वृक्षों पर अकाल में ही फल या पुष्प राजा के प्रयाण काल में आने लगे तो राजा को अपनी युद्ध यात्रा रोक देनी चाहिये ।। १०३ ॥
येषां निदर्शने किञ्चित्
विपरीतं
मुहुर्मुहुः ।
स्थालिका पिठरो वाऽपि तस्य तद्वधमीहते ॥ १०४ ॥
राजा के प्रयाणकाल में (येषां ) जिन वस्तुओं का (विपरीत) विपरीत ( निदर्शने) दर्शन होता है और वह (किञ्चित् मुहुर्मुहुः ) थोड़ा-थोड़ा होता है ( वाऽपि ) उसमें भी (स्थालिका) थाली (पिठरो) मथनी आदि दिखे तो (तस्य) उसकी ( तद्वधमीहते ) यात्रा सफल मत समझो। सेना का वध हो जायगा ।
भावार्थ- वस्तुओं के विपरीत दर्शन से और थाली, मथनी आदि दिखने पर राजा को अपना प्रयाण रोक लेना चाहिये ॥ १०४ ॥
अचिरेणैव कालेन् तद् विनाशाय निवर्तयन्ति ये केचित् प्रयाता बहुशो
कल्पते । नराः ॥ १०५ ॥
( प्रयाता) प्रयाण काल में ( बहुशो नराः) बहुत ही मानव (केचित् ) थोड़े में ही से वापस (निवर्तयन्ति ) लौटकर आ जावे तो (अचिरेणैव कालेन ) थोड़े ही काल में (तद्) उस सेना के ( विनाशाय ) विनाश की ( कल्पते ) सूचना मिलती है।