Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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भावार्थ-जिसे सेना के हाथी पौव से पॉव घिसते हो अथवा तलों से लिखते हुए के समान करे तो समझो उस सेना का निरोध हो जायगा॥१६८ ।।
मत्ता यत्र विपद्यन्ते न माद्यन्ति च योजिताः।
नागास्तत्र वधो राज्ञो महाऽमात्यस्य वा भवेत्॥१६९॥ (नागा:) जिस सेना के हाथी (यत्र) जहाँ (मत्ता) मदोन्मत्त होते हुए भी (विपद्यन्ते) विपत्ति को प्राप्त हो (च) और (न माद्यन्ति योजिताः) मदोन्मत्त नहीं है और उनको मदोन्मत्त करने की योजना करने पर भी नहीं होते हो तो (तत्र) वहाँ (राज्ञो) राजा का (वधो) वध होगा, (वा) व (महाऽमात्यस्य भवेत्) महामन्त्री का मरण होता है।
भावार्थ-जिस सेना का हाथी मदोन्मत्त करने पर भी मदोन्मत्त नहीं होते हो अथवा मदोन्मत्तों को विपरीत करते हो तो समझो राजा का या महामन्त्री का अवश्य मरण हो जायगा ।। १६९ ।।
यदा राजा निवेशेत भूमौ कण्टकसङ्कले।
विषमे सिकताकीर्णे सेनापतिवधो ध्रुवम् ॥ १७०॥ (यदा राजा) जब राजा (कण्टकसङ्घले) कांटे से युक्त अथवा (विषमे) विषम (सिकताकीर्णे) बालु से युक्त (भूमौ) भूमि पर (निवेशेत) निवास करावे तो (ध्रुवम्) निश्चय से (सेनापतिबधो) सेनापति का वध होगा।
भावार्थ-यदि राजा अपनी सेना को कांटे वाली भूमिपर या विषमभूमि पर अथवा बालु से (रेत) युक्त भूमिपर निवास करावे तो समझो अवश्य ही सेनापति का मरण होगा ।। १७०।।
श्मशानास्थिरजः कीर्णे पञ्चदग्धवनस्पतौ।
शुष्कवृक्ष समाकीर्णे निविष्टो वधमीहते॥१७१॥ यदि राजा अपनी सेना को (श्मशानास्थिरज: कीर्णे) श्मशान में अथवा हड्डी से युक्त ब धूल से युक्त (पञ्चपदग्धवनस्पती) अथवा जले हुए वन में व (शुष्कवृक्ष समाकीर्णे) सुकड़े वृक्षों वाली भूमि में (निविष्टो) निवास करावे तो (वधमीहते) राजा के वध होगा।