Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्यायः
भावार्थ-जहाँ पर सवारियों वृक्ष, घर आदि धुंए से अपने आप भर जाय तो जलने लगे, अकाल में फल-पुष्प वृक्षों पर आने लगे, तो समझो वहाँ पर प्रधान पुरुष का नाश होगा!|४५।।।
भवने यदि श्रूयन्ते गीत वादित्रनिस्वनाः।
यस्य तद्धवनं तस्य शारीरं जायते भयम्॥४६॥ (यदि) यदि (भवने) भवनमें (गीतवादिननिस्वना:) वादित्र सूने घर में (श्रूयन्ते) सुनाई पड़े तो (यस्यतद्भवनं) उसी घर वाले के (शारीरं) शरीरमें (भयम् जायते) भय उत्पन्न होगा।
भावार्थ-जिसके सूने भवन में वादित्र नहीं होते हुए भी वादित्र का शब्द सुनाई पड़े तो उसके शरीर में भय उत्पन्न होता है॥४६॥
पुष्पं पुष्पे निबध्येत फलेन च यदा फलम्।
वितथं च तदा विन्द्यात् महज्जनपद क्षयम्॥४७॥ (पुष्पं पुष्पेनिबध्येत) पुष्प में पुष्प हो (च) और (फलेन यदा फलम्) फल में फल उत्पन्न हो (वितथं च तदा विन्द्यात्) तो वितन्डा वाद होगा (महज्जनपदक्षयम्) महाजनों का क्षय होगा।
भावार्थ-यदि पुष्प में पुष्प उत्पन्न हो फल में फल हो तो वितन्डावाद का प्रचार और जनपद का अवश्य क्षय होता है।। ४७॥
चतुःपदानां सर्वेषां मनुजानां यदाऽम्बरे।
श्रूयते व्याहृतं घोरं तदा मुख्यो विपद्यते॥४८॥ (यदाऽम्बरे) जब आकाश में (सर्वेषां) सम्पूर्ण (चतुःपदानां मनुजानां) चार पाँव वाले पशु व मनुष्य के (घोरं) घोर (व्याहतं) व्यवहार के शब्द (श्रूयते) सुनाई पड़े तो (तदा) तब (मुख्योविपद्यते) मुखिया विपत्ति में पड़ जायगा।।
भावार्थ-जब आकाश में चार पाँव वाले पशुओं के व मनुष्यों के शब्द सुनाई पड़े तो नगर मुखिया विपत्ति में पड़ जायगा।। ४८॥