Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्यायः
करे व प्रवेश करे तो (तत्र) वहाँ पर ( शस्त्र वाणिज्यानि) शस्त्रों के व्यापार में (विपर्ययम् विन्धादर्थ) विपरीत होगा याने युद्ध होगा ।
भावार्थ — जहाँ पर ग्रह परस्पर एक-दूसरे का भेदन करे, अथवा प्रवेश करे तो वहाँ पर शस्त्रों से युद्ध होता है ॥ ९८ ॥
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स्वतो गृहमन्यं श्वेतं प्रविशेत लिखेत् तदा । ब्राह्मणानां मिथो भेदं मिथः पीडां विनिर्दिशेत् ॥ ९९ ॥
जब ( स्वतो) स्वयं (गृहमन्यं) गृह चन्द्रमा शुक्र (श्वेतं ) सफेद वर्ण के ग्रहों का (प्रविशेत लिखेत्) स्पर्श करे व प्रवेश करे तो (तदा) तब (ब्राह्मणानां मिथोभेदं) ब्राह्मणों में परस्पर भेद पड़ेगा ( मिथ: पीड़ां विनिर्दिशेत् ) व परस्पर में एक-दूसरे को पीड़ा पहुँचायेंगे ।
भावार्थ — जब स्वयं चन्द्रमा शुक्र सफेद वर्ण के ग्रहों का प्रवेश करे व स्पर्श करे, तो समझो ब्राह्मण भी परस्पर में झगड़ेंगे व एक-दूसरे को पीड़ा देंगे ॥ ९९ ॥ एवं शेषेषु वर्णेषु व वर्णैश्चारयेद् ग्रहः । वर्णत: स्वभयानि स्युस्तद्युतान्युफलक्षयेत् ॥ १०० ॥
( एवं शेषेषु वर्णेषु) इसी प्रकार शेष वर्णों में (स्व वर्णेश्चारयेद् ग्रहः ) अपने वर्णों के ग्रहों का चार करना चाहिये, (वर्णतः स्वभयानिस्युः) वर्णों के अनुसार ही (तद्युतान्युपलक्षयेत्) भय, पीड़ादि लगा लेना चाहिये ।
भावार्थ — इसी प्रकार प्रत्येक वर्णों के साथ ग्रहों के वर्णानुसार शुभाशुभ फल लगा लेना चाहिये, जैसे लाल वर्ण के ग्रह लाल वर्णों के ग्रहों का स्पर्श और प्रवेश करे, तो क्षत्रियों को पीड़ा होगी ऐसा ही अन्य ग्रहों के साथ लगा लेना चाहिये ॥ १०० ॥
ग्रहों के रंग ज्योतिषशास्त्रानुसार डॉ. नेमिचन्द, आरा लिखते हैं
वर्ण
ग्रह
सूर्य
चन्द्र
मंगल
लाल
श्वेत
लाल