Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
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निर्घाते कम्पने भूमौ शुष्कवृक्षप्ररोहणे।
देशपीडा विजानीयान्मुख्यश्चात्र न जीवति ॥४९॥ (भूमौ) भूमि के अकारण ही (निर्घातेकम्पने) निर्घातित और कम्पित होने पर व (शुष्कवृक्षप्ररोहणे) सूखे वृक्ष पुनः हरे हो जाने पर (देशपीडां विजानीयान्) देश को पीडा होगी (मुख्यश्चात्र न जीवति) अथवा मुखिया की मृत्यु होगी।
भावार्थ-भूमि के अकस्मात निर्घातित व कम्पित होने पर व सूखे हुऐ वृक्ष के पुनः हरे होने पर उस देशवासियों को पीडा होगी, अथवा देश के मुखिया का मरण होगा।। ४९॥
यदा भूधरशृङ्गाणि निपतन्ति महीतले।
तदा राष्ट्रभयं विन्द्यात् भद्रबाहुवचो यथा॥५०॥ (यदा) जब (भूधर) पर्वतकी (शृङ्गाणि) चोटी (महीतलेनिपतन्ति) भूमि पर गिर पड़े (तदा) तब (राष्ट्रभयं विन्द्यात्) राष्ट्र भय होगा ऐसा (भद्रबाहुवचो यथा) भद्रबाहु स्वामी का वचन है।
भावार्थ-अब पर्वत की चोटियाँ अकस्मात पृथ्वी पर गिर पड़े तो समझो राष्ट्र को भय उत्पन्न होगा, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है॥५०॥
वल्मीकस्याशु जनने मनुजस्यनिवेशने।
अरण्यं विशतश्चैव तत्र विन्द्यान्महद्भयम्॥५१॥ (मनुजस्यनिवेशने) मनुष्यों के घरों में चीटियाँ (वल्मीकस्याशुजनने) अपने रहने का बिल बनावे और (अरण्यं विशतश्चैव) अरण्य में जावे तो (तत्र) वहाँ पर (महद्भयम् विन्द्यात्) महान भय उत्पन्न होगा।
भावार्थ-यदि मनुष्यों के निवास स्थान में चींटियाँ अपनी बिल बनावे और नगर से अरण्य की ओर जावे तो देश के लिये महान् भय होगा ।। ५१॥
महापिपीलिकावृन्दं सन्द्रकाभृत्यविप्लुतम् ।
तत्र तत्र च सर्व तद्राष्ट्र भङ्गस्य चादिशेत् ॥५२॥ (महापिपीलिकावृन्द) महान चींटियों के झुण्ड (सन्द्रकाभृत्यविप्लुतम्) मिलकर