Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता
पूर्वरूप से क्षय हो जाय ( प्रतिस्रोतः गच्छन्ति वा ) व नदी का प्रवाह उल्टा बहने लगे तो ( परचक्रगमस्तदा) समझो पर शत्रु का आगमन होंगा।
भावार्थ — जो स्थिर नदियाँ है उसका अकस्मात जल सूख जाय व नदियों की धारा उल्टी बहने लगे तो समझो परचक्र का आक्रमण होगा ॥ ४२ ॥
वर्धन्ते चापि शीर्यन्ते चलन्ति वा तदाश्रयात् । सशोणितानि दृश्यन्ते यत्र तत्र महद्भयम् ॥ ४३ ॥
३६०
जहाँ पर नदियाँ ( वर्धन्ते) बहती हो ( शीर्यन्ते) विशीर्ण होती हो (वा) व (चलन्ति ) चलती हो ( तदाश्रयात् ) उसके आश्रय से (सशोणितानि दृश्यन्ते) वह नदीयों का पानी रक्त के समान दिखे तो ( यत्र तत्र महद्भयम् ) जहाँ-तहाँ महान् भय उत्पन्न होगा ।
भावार्थ — जिस देश में नदियाँ अकस्मात बढ़ने लगे, क्षीण होने लगे, चलने लगे और रक्त के समान लाल दिखने लगे तो समझो जहाँ तहाँ महान् भय उत्पन्न होगा ॥ ४३ ॥
शस्त्रकोषात् प्रधावन्ते नदन्ति विचरन्ति व्रा । रुदन्ति दीप्यन्ते संग्रामस्तेषुनिर्दिशेत् ॥ ४४ ॥
यदा
यदि (शस्त्रकोषात् ) शस्त्र कोषसे अपने आप (प्रधावन्ते) निकलने लगे (नदन्ति) शब्द करते हो ( विचरन्ति ) विचरण करते हों व (यदा) जब ( रुदन्ति) रोते हों (दीप्यन्ति ) चमकते हो ( तेषु) वहाँ पर (संग्राम : निर्दिशेत् ) संग्राम होगा ऐसा कहे ।
भावार्थ — यदि शस्त्र अपने आप ही कोष से बाहर निकलने लगे, शब्द करने लगे, विचरण करने लगे रोने लगे, चमकने लगे, वहाँ पर संग्राम अवश्य होगा ॥ ४४ ॥
यानानि वृक्ष वेश्मानिधूमायन्ति ज्वलन्ति वा । अकालजं फलं पुष्पं तत्र मुख्यो विनश्यति ॥ ४५ ॥
(यानानि) सवारी, (वृक्षवेश्मानि ) वृक्ष, घर, (धूमायन्ति ) धूओं से युक्त हो जाय (ज्वलन्ति वा ) जलने लग जाय (अकालजं) अकालमें ही ( फलं पुष्पं ) फल पुष्प वृक्षों पर आने लगे ( तत्र ) वहाँ पर ( मुख्योविनश्यति) मुख्य पुरुष का विनाश होता है।