Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्यायः ।
कहीं भाग रही हो (तत्र तत्र च सर्व) वहाँ-वहाँ के सर्व (तद्राष्ट्रभास्यचादिशेत्) देश भंगो का निर्देश है।
भावार्थ-चींटियों के झुण्ड मिलकर कहीं जाकर विलुप्त हो जावे तो वहाँ राष्ट्र भंग का भय समझना चाहिये ।।५२।।।
महापिपीलिकाराशिर्विस्फुरन्ती
उह्यानुत्तिष्ठते यत्र तत्र विन्यान्महद्भयम्॥५३॥ (महापिपीलिकाराशि) महा चींटियों का झुण्ड (विस्फुरन्तीविपद्यते) विस्फुरित होती हुई मर जाय (उद्यानुत्तिष्टते यत्र) और जहाँ पर उह्यक्षतविक्षत दिखे (तत्र) वहाँ पर (महद्भयम् विन्द्यात्) महान भय उत्पन्न होगा।
भावार्थ-जहाँ पर चींटियों का झुण्ड विस्फुरित होकर मर जाय और उह्यक्षत-विक्षत दिखे तो महान् भय उपस्थित होगा।। ५३ ।।
श्वश्वपिपीलिका वृन्दं निम्नमूद्ध विसर्पति।
वर्ष तत्र विजानीयाद् भद्रबाहुवचो यथा ॥५४।। (श्वश्वपिपीलिका वन्द) जहाँ पर चीटियाँ (निम्नमूर्द्ध विसर्पति) रूप बदलकर याने पंख वाली होकर ऊपर की ओर जावे तो (तत्र) वहाँ पर (वर्ष) वर्षा अच्छी होगी (विजानीयाद्) ऐसा जानो (भद्रबाहुवचो यथा) ऐसा ही भद्रबाहु स्वामी का वचन है।
भावार्थ-जहाँ पर चीटियों के झुण्ड रूप बदल कर याने पंख वाली होकर ऊपर की ओर जावे तो वहाँ पर बहुत ही अच्छी वर्षा होगी, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।। ५४॥
राजोपकरणे भग्ने चलिते पतितेऽपि वा।
क्रव्यादसेवने चैव राजपीडां समादिशेत् ।। ५५॥ (राजोपकरणे भग्ने) राजा के उपकरण भग्न होने पर (चलिते पतितेऽपि वा) चलित होने पर गिरने पर और भी (क्रव्याद्सेवने चैव) मांसाहारी के सेवा करने पर (राजपीडांसमादिशेत्) समझो राजा को पीड़ा होगी।