Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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चतुर्दशोऽध्यायः
की मूर्ति में (विकारः कश्चिदीर्यते) कोई भी विकार दिखे तो (त्रिपक्षेण ) तीन में पक्ष में (तापसंश्च तपाढ्यांश्च) तापसियों का व तपोयुक्त साधुओं को (जिघांसति) विनाश करती है।
३७१
भावार्थ-- जब परशुराम या राम की मूर्ति में विकार दिखे तो तपस्वीयों का अथवा तापसियों का नाश होता है ॥ ७८ ॥
पञ्चविंशतिरात्रेण
कबन्धंयदि
दृश्यते ।
महापुरुषविद्रवम् ॥ ७९ ॥
सन्ध्यायां
भयमाख्याति
( यदि ) यदि ( सन्ध्यायां) सन्ध्याकाल में ( कबन्धं दृश्यते ) धड़ से रहित शरीर दिखे तो ( पञ्चविंशतिरात्रेण) पच्चीस रात्रियों में ( भयमाख्याति ) भय उत्पन्न होगा, ( महापुरुषविद्रवम्) महापुरुषों का विनाश होगा ।
भावार्थ — यदि सांय काल में धड़ से रहित शरीर दिखे तो पच्चीस रात्रि में महापुरुषों को भय उत्पन्न होगा || ७९ ॥
सुलासायांयदोत्पातः
षण्मासं
सर्पिजीविनः ।
पीडयेद् गरुडे यस्य वासुकास्तिक भक्तिषु ॥ ८० ॥
( यदि ) यदि (सुलसायां उत्पातः) सुलसा की प्रतिमा में उत्पात दिखे (षण्मासं) छह महीने तक (सर्पि जीविनः) सपेरों को (पीडयेद्) कष्ट होता है (यस्य) और जिसमें भी, (गरुडे वासुकास्तिक भक्तिषु) गरुड़ की मूर्ति में विकार हो तो और वासुकी की भक्ति करने वालों को भी पीडा होती है।
भावार्थ — यदि सुलसा की प्रतिमा में उत्पात दिखे तो समझो छह महीनों तक सपेरों को पीड़ा, गरुड़ की मूर्ति में विकार दिखे तो वासुकी भक्तों में पीड़ा होगी ॥ ८० ॥
भूतेषु मासेन
यः समुत्पात: सदैव पीडयेत्तूर्ण निर्ग्रन्थ वचनं
( भूतेषुयः समुत्पातः ) भूतों में उत्पात दिखे तो ( मासेन ) एक महीने तक
( परिचारिकाः ) दासियों को (सदैव ) सदा (पीडयेतूर्णं ) पीडा देता है (यथा निर्ग्रन्थ वचनं) ऐसा निर्गन्ध साधुओं का वचन है।
परिचारिकाः ।
यथा ।। ८१ ।।