Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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| चतुर्दशोऽध्यायः ।
तोयावहानि सहसा रुदन्ति च हसन्ति च।
मार्जारवच्च वासन्ति तत्र विन्द्यामहद्भयम्।। ३९। (तोयावहानि) नदीयां (सहसा) सहज रूप (रुदन्ति) रोने लगे और (हसन्ति) हँसने लगे (च) और (मार्जारवच्च वासन्ति) बिल्ली के समान दुर्गन्ध आवे तो (तत्र) वहाँ पर (महद्भयम् विन्द्याद्) महान भय होगा।
भावार्थ-यदि अकस्मात बहती हुई नदीयाँ रोने लगे हँसने लगे बिल्ली की दुर्गन्ध के समान बुदबुदे तो समझो वहाँ पर महान् भय उपस्थित होगा ।। ३९ ।।
वादित्रशब्दाः श्रूयन्ते देशे यास्मिन मानुषैः ।
स देशो राजदण्डेन पीड्यते नात्र संशयः॥४०॥ (यस्मिन्त्रदेश) जिस देश के (भानुः) मनुष्य (वादित्रशब्दाः श्रूयन्ते) वादित्रों के शब्द सुनने लगे (स देशो राजदण्डे न पीड्यते) वह देश राजदण्ड के द्वारा पीडित होगा (नात्र संशय) इसमें कोई सन्देह नहीं हैं।
भावार्थ-जिस देश के मनुष्य अकस्मात् बाजों की आवाज सुनने लगे तो समझो वह देश राजदण्ड से पीडित होगा, यानी राजा उस देश पर नाना प्रकार के संकट डालेगा।। ४०॥
तोयावहानि सर्वाणि वहन्ति रुधिरं यदा।
षष्ठे मासे समुद्भूते संग्राम: शोणिताकुलः ।।४१ ।। _जिस देश की (तोयावहानि) नदीयां (सर्वाणि) सब ही (यदा) जब (रुधिर वहन्ति) रुधिर के समान वर्ण की होकर बहे तो (षष्ठेमासे) छह महीने में (शोणिताकुल: संग्रामः समुद्भूते) रक्त से आकुलित संग्राम का समुद्भव होगा।
भावार्थ-जिस देश में नदीयां जब रक्त के समान वर्ण की होकर बहे तो समझो छह महीने में रक्त की नदियाँ बह जाय, ऐसा संग्राम होगा॥४१॥
चिरस्थायीनि तोयानि पूर्वयान्ति पयः क्षयम्।
गच्छन्ति वा प्रतिस्रोतः परचक्रागमस्तदा॥४२॥ (चिरस्थायीनि तोयानि) चिरस्थायी नदीयों का (पयः) जल (पूर्वयान्ति क्षयम्)