Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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त्रयोदशोऽध्यायः
___ यात्राकालीन शकुन-ब्राह्मण, घोड़ा, हाथी, फल, अन्न, दूध, दही, गौ, सरसों, कमल, वस्त्र, वेश्या, बाजा, मोर, पपैया, नवेला, बंधा हुआ पशु, मांस, श्रेष्ठ वाक्य, फूल, ऊख, भरा कलश, छाता, मृत्तिका, कन्या, रत्न, पगड़ी, बिना बँधा हुआ सफेद बैल, मदिरा, पुत्रवती स्त्री, जलती हुई अग्नि और मछली आदि। पदार्थ यात्राके लिए गमन करते हुए दिखलाई पड़ें तो शुभ शकुन समझना चाहिए। सीसा, काजल, धुला वस्त्र अथवा धोये हुए वस्त्र लिये हुए धोबी, मछली, घृत, सिंहासन, रोदनरहित मुर्दा, ध्वजा, शहद, मेढा, धनुष, गोरोचन, भरद्वाजपक्षी, पालकी, वेदध्वनि, श्रेष्ठ स्तोत्रपाठकी ध्वनि, मांगलिक गायन और अकुंश ये पदार्थ यात्राके समय सम्मुख आवें और बिना जलका घड़ा लिये हुए आदमी पीछे जाता हो तो अत्युत्तम है।
बाँझ स्त्री, चमड़ा, धानको भूसी, हाड़, सर्प, लवण, अंगार, ईधन, हिजड़ा, विष्ठा लिये पुरुष, तेल, पागल व्यक्ति, चर्बी, औषध, शत्रु, जटावाला व्यक्ति, संन्यासी, तृण, रोगी, मुनि और बालकके अतिरिक्त अन्य नंगा व्यक्ति, तेल लगाकर बिना स्नान किये हुए, छूटे केश, जाति से पतित, कान-नाक कटा व्यक्ति, भूखा, रुधिर, रजस्वला स्त्री, गिरगिट, निज घरका जलना, बिलावों का लड़ना और सम्मुख छींक यात्रामें अशुभ है। गेरूसे रंगा कपड़ा या इस प्रकारके वस्त्रों को धारण करने वाला व्यक्ति, गुड़, छाछ, कीचड़, विधवा स्त्री, कुबड़ा व्यक्ति, लड़ाई, शरीरसे वस्त्र गिर जाना, भैंसोंकी लड़ाई, काला अन्न रुई, वमन, दाहिनी और गर्धव शब्द, अतिक्रोध, गर्भवती, सिरमुण्डा, गीले वस्त्र वाला, दुष्ट वचन बोलनेवाला, अन्धा और बहिरा ये सब यात्रा समय में सम्मुख आवें तो अतिनिन्दित हैं।
गोहा, जाहा, शूकर, सर्प और खरगोश का शब्द शुभ होता है। निज या परके मुखसे इनका नाम लेना शुभ है, परन्तु इनका शब्द या दर्शन शुभ नहीं है। रीछ और वानरका नाम लेना और सुनना अशुभ है, पर शब्द सुनना शुभ होता है। नदीका तैरना, भयकार्य, गृहप्रवेश और नष्ट वस्तुका देखना साधारण शुभ है। कोयल, छिपकली, पोतकी, शूकरी, रता, पिंगला, छछुन्दरि, सियारिन, कपोत, खञ्जन, तीतर इत्यादि पक्षी यदि राजाकी यात्राके समय वाम भागमें हों तो शुभ हैं। छिक्कर, पपीहा, श्रीकण्ठ, वानर और रुरुमग यात्रा समय दक्षिण भागमें हों