Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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भावार्थ-गर्मी के दिन में ठण्डी और ठण्डी के दिनों में गर्मी पड़ने लगे तो समझो नवें या दसवें महीने में महान भय उत्पन्न होगा॥३॥
सप्ताहमष्टरानं वा नवरात्रं दशाह्निकम्।
यदा निपतते वर्ष प्रधानस्य वधाय तत् ॥ ४॥ (यदा वर्ष) जब वर्षा (सप्ताहमष्टरानं वा) सप्ताह के आठवीं रात्रि तक व (नवरात्रं दशाह्निकम्) नौ दिम और दस रात्रि तक (भिपतते) बरसती है तो (तत्) वहाँ (प्रधानास्य वधाय) प्रधान के वध का कारण बनेगा।
भावार्थ-जब वर्षा सात दिन और आठवीं रात्रि में समाप्त हो और नौ दिन पूरी बरस कर दशवीं रात्रि को समाप्त हो तो समझो वहाँ प्रधान का मरण होगा॥४॥
पक्षिणच यदा मत्ताः पशवश्च पृथग्विधाः।
विपर्ययेण संसक्ता विद्याद् जनपदे भयम्॥५॥
(पक्षिणश्च यदामत्ताः) यदि पक्षी उन्मत्त दिखे (पशवश्च पृथग्विधाः) और पश विपरीत स्वभाव वाले हो जाय, (विपर्ययेण संसक्ता) भिन्न जाति वाले पशुओं पर
आसक्त हो जाय तो (जनपदे भयम् विद्याद्) समझो देश में महान् भय होगा ऐसा समझो।
भावार्थ-जब पक्षी उन्मत्त दिखे पशु विपरीत स्वभाव वाले हो जाय भिन्न जाति के पशु-पक्षी भिन्न जाति वाले पशु-पक्षियों के साथ सम्भोग करे तो समझो देश में भय उत्पन्न होगा ।।५।।
आरण्या ग्राममायान्ति वनं गच्छन्ति नागराः । रुदन्ति चाथ जल्पन्ति तदापायाय कल्पते॥६॥ अष्टादशषु मासेषु तथा सप्तदशषु च।
राजा च म्रियते तत्र भयं रोगश्च जायते॥७॥ (आरण्या ग्राममायान्ति) जंगली पशु नगर में आने लगे, (वनं गच्छन्ति नागराः) नगर के जंगल में जाने लगे (रुदन्ति चाथजल्पन्ति) रोवे और बोलने लगे तो (तदापायाय कल्पते) तब समझो जनो का पाप उदय आ गया है। (अष्टादशषु मासेषु) अठारह