Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
नाश, (कपिलैम्लेंच्छमण्डलम्) कपिल वस्त्र दिखे तो म्लेच्छ लोगों का नाश (धूमै) धूम्रवर्ण का वस्त्र दिखे तो (श्वपचान् चाण्डाला) चांडालादिकका (निहन्ति नाप्यसंशय:) नाश करता है इसमें कोई सन्देह नहीं है।
भावार्थ-यदि वृक्ष नीले वस्त्रों से युक्त दिखे तो शूद्रादिक का नाश होगा, कपिल वस्त्रों से युक्त दिखे तो म्लैक्ष लोंगो का नाश होगा, धूम्रवर्ण का दिखे तो चाण्डालादिक का नाश होगा इसमें कोई सन्देह नहीं है।। २३ ॥
मथुरा: क्षीरवृक्षाश्च श्वेतपुष्पफलाश्च ये।
सौम्यायां दिशि यज्ञार्थं जानीयात् प्रतिपुद्गलाः ।। २४॥ (ये) जो (सौम्यायां) उत्तर (दिशि) दिशामें (मधुरा:) मधुर (क्षीरवृक्षाश्च) क्षीर वृक्ष (स्नेह पुष्प फलाब) सफेद गुल और पल दिहे तो (यज्ञार्थ प्रतिपुद्गला: जानीयात्) यज्ञ के लिये उत्पात का कारण जानो।
भावार्थ-जो मधुर वृक्ष श्वेतपुष्पों व फलों से सहित उत्तर दिशा में अगर दिखे तो ब्राह्मणों के यज्ञ के लिये उत्पात का कारण बनेगा ।। २४ ।।
कषाय मधुरास्तिक्ता उष्णवीर्य विलासिनः ।
रक्तपुष्पफलाः प्राच्या सुदीर्घ नृपक्षत्रयोः ॥२५॥
यदि (प्राच्या) पूर्वदिशामें वृक्ष (कषाय) कषाय, (मधुरास्तिक्ता) मधुर, तिक्त, (उष्णवीर्यविलासिनः) उष्णवीर्य, विलासिन (रक्तपुष्पफला:) लाल पुष्प और फलों से युक्त हो तो (सुदीर्घ नृप क्षत्रयोः) बलवान् राजा व क्षत्रियों के लिये उत्पात का कारण होगा।
भावार्थ-यदि वृक्ष पूर्व दिशामें कषाय, मधुर, तिक्त, उष्णवीर्य विलास, लाल पुष्प व फलादिक से सहित दिखे तो समझो राजा व क्षत्रियों के लिये उत्पात का कारण होगा॥२५॥
अम्लाः सलवणाः स्निग्धाः पीतपुष्पफलाश्च ये।
दक्षिण दिशि विज्ञेया वैश्यानां प्रतिपुद्गलाः ॥२६॥ यदि (दक्षिणदिशि) दक्षिण दिशा के वृक्ष (ये) जो (अम्ला:) आम्ल (स