Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भदबाहु संहिता
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देवतान् पूजयेत् वृद्धान् लिङ्गिनो ब्राह्मणान् गुरून्।
परिहारेण नृपती राज्यं मोदति सर्वतः ॥१८१॥
जो राजा (देवतान्) देवताओं की (वृद्धान) वृद्धों की (लिङ्गिनो) साधुओं (ब्राह्मणान) ब्राह्मणों की (गुरून) गुरुओं की (पूजयेत्) पूजा करके (राज्य) राज्य के दोषों का (नृपति) राजा (परिहारेण) परिहार करे वही राजा (सर्वत:) सब जगह (मोदति) आनन्द पाता है।
भावार्थ-राजा देवताओं की पूजा करके वृद्धों का सम्मान करके साधुओं की अर्चना करके ब्राह्मणों का आदर करके गुरुओं की सेवा करके राज्य के सब दोषों को परिहार करता है वो ही राजा देश को आनन्दित होता है॥ १८१॥
राजवंशं न वोच्छिद्यात् बालवृद्धांश्च पण्डितान्।
न्यायेनार्थान् समासाद्य सार्थो राजा विवर्द्धते ।। १८२ ।। विजय पा लेने के बाद (राजवंशं न वोच्छिद्यात्) शत्रु राजा के वंश का नाश कभी नहीं करना चाहिये (बालवृद्धांश्चपण्डितान्) और बालक, वृद्ध, पण्डितों का भी नाश नहीं करना चाहिये, (न्यायेनार्थान् समासाद्य) न्याय से जो राजा राज्य करता है वो ही (राजा) राजा (सार्थो विवर्द्धते) वृद्धि को प्राप्त होता है।
भावार्थ-राज्य प्राप्त कर लेने पर राजा कभी-कभी शत्रु राजा के वंश का नाश नहीं करना चाहिये, और बालक, वृद्ध, पण्डितजनों को भी कष्ट न देवे, न्याय से राज्य करने वाला राजा ही वृद्धि को प्राप्त होता है ।। १८२॥
धर्मोत्सवान् विवाहांश्च सुतानां कारयेद् बुधः।
न चिरं धारयेद् कन्यां तथा धर्मेण वर्द्धते॥९८३॥
बुद्धिमान राजा को चाहिये की जिस राज्य पर विजय पायी है (धर्मोत्सवान) उस राज्य में धर्मोत्सव करे, (सुतानां विवाहांश्च) उस राजा की कन्याओं का विवाह कर देवे (न चिरं धारयेद् कन्यां) क्योंकि कन्याओं को ज्यादा रखना ठीक नहीं है (तथा धर्मेणवर्द्धते) इसी प्रकार करने वाला राजा ही वृद्धि को प्राप्त होता है।
भावार्थ-बुद्धिमान राजा को पर राज्य के ऊपर विजय पा लेने के बाद उस राजा की कन्याओं का विवाह शीघ्र कर देना चाहिये, उस राज्य में धर्मोत्सव