Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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त्रयोदशमः
भावार्थ — अगर सेना के लोग दुर्वर्ण वाले, दुर्गन्ध वाले, कुवेष वाले और व्याधियों से पीड़ित हो तो समझो सेना शस्त्रों से मारी जायगी ॥ ९७७ ॥
राज्ञो
यथाज्ञानप्ररूपेण विज्ञेयः सम्प्रयातस्य
भद्रबाहुवचो
( यथा ) इस प्रकार ( राज्ञो) राजा के (जयपराजय ) जय-पराजय का (ज्ञान) ज्ञान (प्ररूपेण) प्ररूपण के द्वारा (सम्प्रयातस्य) प्रमाण काल निश्चित (विज्ञेयः ) जानना चाहिये (यथा भद्रबाहुबचो ) इसी प्रकार भद्रबाहु स्वामी का वचन है।
भावार्थ — इस प्रकार प्रयाण काल में राजा के जय-पराजय का ज्ञान भद्रबाहु स्वामी ने कहा आपको जानना चाहिये ।। १७८ ॥
जयपराजयः ।
यथा ।। १७८ ।।
परस्य विषयं लब्ध्वा अग्निदग्धा न लोपयेत् । परदारां हिंस्येत् पशून वा पक्षिणस्तथा ॥ १७९ ॥
न
( परस्य विषयं लब्ध्वा ) दूसरे देश के राजा का राज्य मिलने पर (अग्निदग्धा न लोपयेद्) उस राज्य में अग्नि लगाकर उसका लोप नहीं करना चाहिये, (परदारां न हिंस्येत् पशून वा पक्षिणस्तथा) और परस्त्री का शील लूटे, पशु और पक्षियों की हिंसा न करे ।
वशीकृतेषु मध्येषु न च निरापराधचित्तानि नाददीत
भावार्थ- दूसरे राजा का राज्य प्राप्त कर लेने पर उस राज्य को अनि जलाकर उस राज्य का लोप न करे, वहाँ की परस्त्री का शील भंग न करे और वहाँ के पशु-पक्षियों की भी हिंसा न करे ।। १७९ ।।
शस्त्रं
निपातयेत् ।
क्रदाचन ।। १८० ॥
( वशीकृतेषु मध्येषु ) बस में किये हुए प्रदेशों में ( न शस्त्रं निपातयेत् ) शस्त्र प्रयोग कभी नहीं करना चाहिये, (निरापराधचित्तानि) निरपराधी चित्तवालो को ( कदाचन नाददीत) कभी भी पीड़ा नहीं देनी चाहिये ।
भावार्थ - राजा को चाहिये कि जिन प्रदेशों पर विजय प्राप्त की है उन प्रदेशों के लोगों पर कभी शस्त्रपात न करे, याने निरपराधी लोगों को न मारे न किसी प्रकार की पीड़ा पहुंचावे, यही न्यायी राजा का कर्त्तव्य है ।। १८० ।।