Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
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व दलाव वाली भूमि की ओर निवास करावे तो ( पार्थिवः) राजा ( युद्धमिच्छति ) युद्ध चाहता है।
भावार्थ - यदि सेना को राजा अमनोज्ञ फलों और पुष्पों के स्थानों पर अथवा मांसभक्षी पक्षियों के निवास स्थानों पर अथवा दलाव वाली जगह पर निवास करावे तो समझो राजा युद्ध की इच्छा करता है ।। १७४ ॥
नीचैर्निविष्टभूपस्य
नीचेभ्यो
भयमादिशेत् । यथा दृष्टेषु देशेषु तज्झेभ्यः प्राप्नुयाद् वधम् ॥ १७५ ॥ (नीचैर्निभूपस्य) नीने स्थानों पर हो हुए राजा को (नीचेभ्यो भयमादिशेत् ) नीच लोगों के द्वारा भय होता है ( यथा दृष्टेषु देशेषु) जिस स्थान व देश में देखे गये ( तज्झेभ्यः प्राप्नुयाद् वधम् ) उन्हीं स्थानों में राजा का वध हो जायगा ।
भावार्थ --- नीचे की ओर ठहरे हुए राजा को नीच लोगों से भय उत्पन्न होगा, जिस स्थान पर देखे गये उन्हीं स्थानों में राजा का वध होगा ।। १७५ ।।
यत् किञ्चित् परिहीनं स्यात् तत् पराजयलक्षणम् । परिवृद्धं च यद् किञ्चिद् दृश्यते विजयावहम् ॥ १७६ ॥
( यत् किञ्चित् परिहीनं स्यात् ) जो कुछ भी हीनता दिखलाई पड़ती है तो समझो (तत् पराजयलक्षणम्) वह सब पराजय के लक्षण है (परिवृद्धं च यद् किञ्चिद्) और जो कुछ भी वृद्धि देखी जाती है तो ( विजयावहम दृश्यते ) समझो विजय के लक्षण है।
भावार्थ- सेना में जो कुछ भी हीनता दिखती है तो समझना चाहिये पराजय के लक्षण है और वृद्धि दिखती है तो समझो विजय के लक्षण हैं ।। १७६ ॥
कुवेषा
दुर्वर्णाश्च
दुर्गन्धाश्च
व्याधिनस्तथा ।
सेनाया ये नराश्च स्युः शस्त्रवध्या भवन्त्यथ ।। १७७ ।।
( दुर्वर्णाश्च) दुर्वर्ण वाले ( दुर्गन्धाश्च ) दुर्गन्ध वाले, ( कुवेषा) कुवेष वाले (तथा) तथा ( व्याधिनः ) व्याधि से पीड़ित ( सेनाया ये नराश्च ) अगर सेना के लोग हो तो ( शस्त्रवध्या भवन्त्यथ) समझो सेना शस्त्रों के द्वारा मारी जायगी।
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