Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता
(नक्षत्रै) नक्षत्र (रुत्तरैश्चया) और जो उत्तरात्रय नक्षत्र इन नक्षत्रों के (पूर्वाह्ने) पूर्वाह्न काल में (प्रयाता) प्रयाण करे तो (सा सेना) वो सेना (परिवर्तते) वापस आ जाती
भावार्थ-यदि सेना विशाखा, रोहिणी, सूर्य के नक्षत्र और तीनों उत्तरा नक्षत्रों में प्रयाण करे तो समझो सेना वापस आ जायगी, युद्ध नहीं होगा ।। ९५॥
पुष्येण मैत्रयोगेन योऽश्विन्यां च नराधिपः ।
अपराह्ने विनर्याति वाच्छितं स समाप्नुयात्॥९६ ।। (पुष्येण) पुष्य नक्षत्र (मैत्रयोगेन) अनुराधा (च) और (योऽश्विन्यां) जो अश्विनि नक्षत्र के (अपराह्वे) अपराह्न काल में (नराधिपः) राजा (विनर्याति) प्रयाण करे (स) वह (वाच्छितं समाप्नुयात्) वांछित कार्य करके लौटता है।
भावार्थ-पुष्य, अनुराधा, अश्विनी नक्षत्रों के अपराह्न काल में प्रयाण करने वाला राजा अपने इष्ट कार्य की सिद्धि करके वापस आ जाता है।। ९६॥
दिवा हस्ते तु रेवत्यां वैष्णवे च न शोभनम्।
प्रयाणं सर्व भूतानां विशेषेण महीपतेः ।। ९७॥ (दिवा हस्ते) हस्त नक्षत्र के दिन में (च) और (रेवत्यां) रेवती नक्षत्र (वैष्णवे) श्रवण नक्षत्रों में (सर्वभूतानां) सब जीवों का (प्रयाणं) प्रयाण (शोभनम् न) शोभास्पद नहीं है और (विशेषेण महीपते:) विशेष रीति से राजा के लिये तो शोभास्पद नहीं
भावार्थ-हस्त नक्षत्र के दिन में और रेवती नक्षत्र श्रवण नक्षत्रों में प्रयाण किसी भी जीव का अच्छा नहीं है और राजा के लिये अच्छा है ही नहीं॥१७॥
हीने मुहूर्ते नक्षत्रे तिथौ च करणे तथा।
पार्थिवो योऽभिनिर्याति अचिरात् सोऽपि बध्यते ।। ९८॥ (मूहुर्ते) मुहूर्त (नक्षत्रे) नक्षत्र (तिथौ) तिथि (च) और (करणे) करण के (हीने) हीन होने पर (पार्थिवो) राजा (योऽभिनिर्याति) अगर प्रयाण करे तो (सोऽपि) वो भी (अचिरात्) शीघ्र (बध्यते) मारा जाता है।
भावार्थ-मुहुर्त, नक्षत्र, करण, तिथि आदि के हीन होने पर राजा अगर युद्ध के लिये प्रयाण करे तो समझो वो शीघ्र ही मारा जाएगा ।। ९८ ।।