Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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त्रयोदशोऽध्यायः
भावार्थ-जब घोड़े हँसते हुए अर्द्धवृत्ताकार होकर प्रमोदित मन होकर दौड़ते हैं तो समझो राजा की विजय होगी ।। १४५ ॥
पादं पादेन मुक्तानि निःक्रमन्ति यदा हयाः । पृथन् पृथम् संस्पृश्यन्ते तदा विन्द्याद्भयावहम् ॥ १४६ ॥
(यदा हयाः) जब घोड़े ( पादं पादेन मुक्तानि ) पाँव से पाँव पृथक् करके ( निःक्रमन्ति) निकले और वह भी ( पृथग्पृथग्संस्पृश्यन्ते) पृथक्-पृथक् स्पर्श करे तो ( तदा ) तब ( भयावहम् विन्द्याद्) भय को उत्पन्न करेंगे ऐसा जानो ।
भावार्थ— जब घोड़े पाँव से पाँव अलग करके चले और अलग-अलग स्पर्श करे तो राजा को भय होगा ऐसा जानो ॥ १४६ ॥
यदा राज्ञः प्रयातस्य वाजिनां
संप्रणाहिकः ।
पथि च म्रियते यास्मिन्नचिरात्मा नो भविष्यति ।। १४७ ।।
( यदा राज्ञः प्रयातस्य ) जब राजा के प्रयाण समय में ( वाजिनां ) घोड़ों को ( संप्रणाहिक: ) पालन करने वाला (पथि च म्रियते) मार्ग में ही मर जाय तो ( यस्मिन्नचिरात्मा नो भविष्यति ) राजा का मरण निकट है वह चिरकाल तक नहीं जी सकता है।
भावार्थ — राजा के प्रयाण समय में घोड़ों का पालन करने वाला मार्ग में ही मर जाय तो समझो राजा का शीघ्र ही मरण हो जाने वाला है ।। १४७ ।।
शिरस्यास्ये च दृश्यन्ते यदा हृष्टास्तु वाजिनः ।
तदा राज्ञो जयं विन्द्यान्नचिरात् समुपस्थितम् ॥ १४८ ॥
( यदा वाजिनः ) जब घोड़े (शिरस्यास्ये च हृष्टास्तु दृश्यन्ते) सिर और मुख से प्रशन्न दिखे तो ( तदा राज्ञो) तब राजा को (जयं विन्द्यात्) जय होगी (अचिरातसमुपस्थितम् ) ऐसा शीघ्र
तुम
भावार्थ- जब घोड़े सिर से
राजा की शीघ्र ही जय होगी ।। १४८ ॥
जानो ! और मुख से प्रशन्न दिखलाई पड़े तो समझो