Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता |
३१८
(यदा) जब घोड़े का (मेंद्र) अण्डकोष (प्रज्वलते) जलता हुआ दिखे तो (अन्त:पुरविनाशाय) अन्तपुर का विनाश होगा, (च) और (उदरं ज्वलमान) पेट जलता हुआ दिखाई देतो (कोशनाशाय वाजवलेत्) समझो धनागार का नाश हो जायगा।
भावार्थ-जब सेना के घोड़े का अण्डकोष जलता हुआ दिखे तो समझो अन्तपुर का नाश हो जायगा, और पेट जलता हुआ दिखे तो भण्डार नाश होगा।। १५५ ।।
शेरते दक्षिणे पार्वे हयो जयपुरस्कृतः। स्वबन्धशायिनशाहुर्जयमाश्चर्य
साधकः॥१५६ ॥ (यदि) यदि (हयो) घोड़ा (दक्षिणे पार्वे शेरते) दक्षिणपार्श्व से सोता है तो (जयपुरस्कृत:) जय देना वाला होता है और (स्वबन्धायिनश्चाहु) पेट की तरफ से शयन करे तो समझो (साधकः) साधक की (आश्चर्य) आश्चर्यपूर्वक (जयम्) जय होगी।
भावार्थ-यदि घोड़ा पेट के सहारे प्रयाण समय में सोता है तो समझो राजा की आश्चर्यपूर्वक जय होगी और दक्षिण की ओर शयन करता है तो राजा की विजय होगी॥१५६॥
वामार्धशायिनश्चैव तुरङ्गा नित्यमेव च।
राज्ञो यस्य न सन्देहस्तस्य मृत्युं समादिशेत् ।। १५७॥ (नित्यमेवतुरङ्गा) नित्य ही घोड़ा (वामार्धशायिनश्चैव) वाम भाग से और वो भी अर्ध भाग से शयन करे तो यस्य) जिस (राज्ञो) राजा की सेना है (तस्य) उसी (मृत्यु) मृत्यु होगी (यस्य न सन्देहः) उसमें कोई सन्देह नहीं है। (समादिशेत) ऐसा कहा है।
भावार्थ-नित्य ही घोड़ा वाम भाग से वह भी आधे ही से शयन करे और नित्य करे तो राजा की मृत्यु होने में कोई सन्देह नहीं है।। १५७॥
सौसुप्यते यदा नाग: पश्चिमश्चरणस्तथा।
सेनापतिवधं विद्याद् यदाऽनं च न मुञ्जते॥१५८॥ (यदा नगाः) यदि हाथी (पश्चिमश्चरणसौ सुप्यते) पश्चिम की तरफ पाँव कर