Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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त्रयोदशोऽध्यायः
वाहकस्य वधं विन्द्याद् यदा स्कन्धे हयो ज्वलेत् । पृष्टतो ज्वलमाने तु भयं
सेनापतेर्भवेत् ॥ १५२ ॥
( यदा) जब (हयो) घोड़े का ( स्कन्धे) कन्धा (ज्वलेत्) जलता हुआ दिखाई पड़े तो (वाहकस्य वधं विन्द्याद्) सवार का मरण समझो और ( पृष्ठतो ज्वलमानेतु) पृष्ठ भाग जलता हुआ दिखाई पड़े तो समझो ( सेनापतेर्भवेत् ) सेनापति को भय उत्पन्न होगा ।
भावार्थ-यदि घोड़े का कन्धा जलता हुआ दिखाई पड़े तो समझो घुड़सवार मारा जायगा, और पृष्ठ भाग जलता हुआ दिखे तो समझो सेनापति को भय उत्पन्न होगा ॥ १५२ ॥
तस्यैव तु यदा गुरख्यात ला बाई
धूमो निर्धावति प्रहेषतः । निर्दिशेत् अनुपस्थितम् ॥ १५३ ॥
( यदा) जब (प्रहेषतः ) घोड़ों के ( निर्धावति) दौड़ते हुए का (धूमो ) धुआँ पीछा करे (तु) तो ( तस्यैव ) उसके ही (पुरस्यापि ) नगर का भी ( नाशं) नाश ( प्रत्युपस्थितम् ) उपस्थित होगा ऐसा (निर्दिशेत् ) निर्देश दिया है।
भावार्थ - जब दौड़ते हुए घोड़ों का पीछा धुआँ करे तो समझो राजा के नगर का नाश हो जायगा, यहाँ ऐसा निर्देश है ॥ १५३ ॥
सेनापतिवधं विद्याद् बालस्थानं यदा ज्वलेत् । त्रीणि वर्षान्यनावृष्टिस्तदा तद्विषये भवेत् ॥ १५४ ॥
( यदा) जब घोड़े के ( बालस्थानं ज्वलेत्) बाल स्थान जलता हुआ दिखे तो ( सेनापति वधं विद्याद्) सेनापति का वध समझो। और ( त्रीणिवर्षान्यनावृष्टिस्तदा तद्विषये भवेत् ) तीन वर्ष तक अनावृष्टि होगी ऐसा समझना चाहिए।
भावार्थ-जब घोड़े के वाल स्थान जलते हुए दिखाई पड़े तो समझो सेनापति का वध होगा, और तीन वर्ष तक अनावृष्टि होगी ऐसा आचार्यश्री ने कहा हैं ।। १५४ ॥
अन्तःपुर विनाशाय मेंद्र प्रज्वलते यदा ।
उदरं ज्वलमानं च कोशनाशाय वा ज्वलेत् ॥ १५५ ॥