Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
हयानां ज्वलिते चाग्निः पुच्छे पाणी पदेषु वा । जघने च नितम्बे च तदा विद्यान्महद्भयम् ॥ १४९ ॥
(हयानां ) जब घोड़ों के (पुच्छे ) पूंछ से (पाणौपदेषुवा) हाथों में व पाँवों में व ( जघने व नितम्बे च) जघन स्थानों में व नितम्ब स्थानों में (ज्वलितेचाग्निः ) यदि अग्नि प्रज्वलित दिखे तो ( तदा विद्यान्महद्भयम् ) तब महान भय होगा ऐसा समझो ।
हेमानस्य अश्वस्यविजयं
भावार्थ — जब घोड़ो के पाँवों में नितम्बों में पुच्छों में जघन्य स्थानों में अग्नि प्रज्वलित दिखे तो समझो राजा को महान भय उपस्थित होगा ।। १४९ ॥
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दीप्ता सुनिपतन्त्यर्चिषो श्रेष्ठ मूर्ध्वदृष्टिश्च
श्वेतस्य कृष्णं दृश्येत पूर्वकाये तु हन्यात् तं स्वामिनं क्षिप्रं विपरीते
मुखात् । शंसते ॥। १५० ।।
(हेषमानस्य) हँसते हुए (दीप्तासु) बोड़े के (मुखात्) मुख हे (दितन्त्यर्चिनो) अनि लगती हुई दिखाई पड़े व (अश्वस्य ) घोड़े का (मूर्ध्वदृष्टिश्च श्रेष्ठ) ऊपर की ओर मुँह करके देखना भी श्रेष्ठ है वह (विजयं शंसते ) राजा की विजय होती है ऐसी सूचना करता है।
भावार्थ - हँसते हुए घोड़े के मुँह से यदि अग्नि लगती हुई दिखाई पड़े और घोड़े ऊपर मुँह करके देखे तो राजा की विजय होगी ऐसा समझना चाहिये ॥ १५० ॥ वाजिनः । धनागमम् ॥ १५१ ॥
( वाजिनः ) घोड़ों के ( पूर्वकाये) पूर्वभाग ( श्वेतस्यकृष्णं दृश्येत ) सफेद का काला दिखाई दे (तु) तो (तं) उस सेना के ( स्वामिनं हन्यात्) स्वामी का मरण होगा (विपरीते क्षिप्रं धनागमम् ) विपरीत दिखे तो शीघ्र ही घन का आगमन होता
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भावार्थ — यदि घोड़े का पूर्वभाग सफेद का काला दिखाई पड़े तो समझो सेना के राजा का मरण होगा, और विपरीत दिखे तो याने उत्तर भाग काले का सफेद दिखे तो समझो शीघ्र ही राजा को धन लाभ मिलेगा ॥ १५१ ॥