Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता |
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हों (तदा) तब (खलु) निश्चिय से (कुर्यादभ्युत्थितं सैन्यं पराजयम्) उठती हुआ सेना का पराजय होगा।
भावार्थ प्रयाण करने वाली सेना के वाहन और प्रहरणों में जो-जो शुभाशुभ घटित हो तो है उसी के अनुसार फल होता है। १४२ ॥
सन्नाहिको यदा युक्तो नष्टसैन्यो बहिर्वजेत्।
तदा राज्यप्रणाशस्तु अचिरेण भविष्यति॥१४३॥ (यदा) जब (नष्टसैन्यो) सेना के नष्ट होने पर (सन्नाहिकोयुक्तो) सेना से युक्त नायक (बहिर्ब्रजेत्) बाहर चला जावे तो (तदा) तब (अचिरेण) शीघ्र ही (राज्यप्रणाशस्तु भविष्यति) राज्य नष्ट हो जायगा।
भावार्थ-जब राजा की सेना नष्ट हो जाय और सेना नायक पलायन हो जाय तो समझो उस राज्य का नाश होने वाला है सेना नायक बिना राज्य स्थिर नहीं रह सकता है॥ १४३||
सौम्यं बाह्यं नरेन्द्रस्य हयममारुह्यते हयः।
सेनायामन्यराजानां तदा मार्गन्ति नागराः ॥१४४॥ (नरेन्द्रस्य) राजा के (सौम्यं बाह्य) बाहर निकलने पर (हयममारुह्यते हयः) उत्तर दिशा में घोड़ा-घोड़े पर चढ़े तो (सेनायामन्यराजानां) सेना के लोग अन्य राजा की (तदा) तब (मार्गन्ति नागरा:) शरण में चले जाते हैं।
भावार्थ-यदि युद्ध प्रयाण के समय में राजा के उत्तर की ओर घोड़ा-घोड़े पर चढ़े तो समझो उस नगर के लोग अन्य राजा की शरण में चले जाते हैं। १४४ ।।
अर्द्धवृत्ता: प्रधावन्ति वाजिनस्तु युयुत्सवः।
हेषमाना: प्रमुदितास्तदा ज्ञेयो जयो ध्रुवम् ।। १४५॥ (वाजिनस्तु) जब घोड़े, (हेषमाना:) हंसते हुए, (प्रमुदिता:) प्रमोद मन से (युयुत्सवः) उत्सव सहित (अर्द्धवृत्ता:) अर्द्धवृत्ताकार (प्रधावन्ति) दौड़ते हैं तो समझो राजा की (ध्रुवम्) निश्चय से (जयो शेयो) जय समझनी चाहिये।