Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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त्रयोदशोऽध्यायः
सोवे (तथा) तथा (यदाऽनंचनभुञ्जते) जब अन्न भी नहीं खाता हो तो (सेनापति वधं विद्या) सेनापति का वध होगा ऐसा समझो।
भावार्थ-जब हाथी पश्चिम दिशा की ओर पाँव करके शयन करे, और भोजन भी न करे तो समझो सेनापति का वध हो जायगा । १५८॥
यदान्नं पादवारौं वा नाभिनन्दन्ति हस्तिनः।
यस्यां तस्यां तु सेनायामचिराद्वधमादिशेत्॥१५९॥ (यस्यां) जिस (सेनायाम्) सेना के (हस्तिन:) हाथी (यदान्नं पादवारी वा नाभिनन्दन्ति) अन्न-पानी ग्रहण नहीं करे (तो तो (तयां) उस सेना के लोग (अचिराद्वधमादिशेत्) शीघ्र ही मरण को प्राप्त हो जायगें।
भावार्थ-सेना के हाथी आहार पानी छोड़कर पड़ जाय तो समझो उस सेना का विनाश हो जायगा कोई नहीं बचेगा।। १५९॥
निपतन्त्यग्रतो यद्वै त्रस्यन्ति वा रुदन्ति वा।
निष्पदन्ते समुद्विग्नां यस्य तस्य वधं वदेत्॥१६॥ (यस्य) जिस राजा की सेना के आगे कोई व्यक्ति (यद्वै) यदि (त्रस्यन्ति वा रुदन्ति वा) त्रसित होकर रोता हुआ (अग्रतो) आगे (निपतन्त्य्) गिरे और वो भी (समुद्विग्न) उद्विग्न होकर तो (तस्य) उस राजा का (वधं) मरण (निष्पदन्ते) निष्पादन करेगा (वदेत्) ऐसा कहो।
भावार्थ-अगर कोई व्यक्ति प्रयाण काल में राजा की सेना के आगे रोता हुआ, कष्ट से उद्विग्न होकर गिरे तो समझो राजा का मरण होगा ऐसा कहो।। १६० ।।
क्रूरं नदन्ति विषमं विश्वर निशि हस्तिनः।
दीप्यमानास्तु केचित्तु तदा सेनावधं ध्रुवम् ॥१६१॥ यदि (हस्तिनः) हाथी (निशि) रात्रि में (क्रर) र (विषमं) विषम (विश्वर) विश्वर (नदन्ति) करते हैं, (केचित्तु दीप्यमानास्तु) और जलते हुए दिखाई पड़े तो (तदा) तब (सेमावधं ध्रुवम्) निश्चय से सेना का मरण होगा।
___ भावार्थ- यदि रात्रि में हाथी क्रूर, विषम और विश्वर करे और अग्नि में जलते हुए दिखे तो समझो सेना का वध हो जायगा॥१६१ ।।