Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
-
३०१
युक्तो
मात्रयात्यधिक
सैन्यं यदि वा न
( यदाप्य युक्तो मात्रयात्यधिको ) यदि प्रयाण से भी ज्यादा ( मारुतस्तदा) हवा चले सेना को रोके और (यदि वा न निवर्त्तते) यदि सेना नहीं रुके और फिर जावे तो (परते सैन्यं) व्हनारायणा ।
भावार्थ — प्रयाण काल में मात्रा से अधिक हवा चल कर सेना का मार्ग अवरोध करे तो भी सेना नहीं रुके तो समझो वो राजा अवश्य मारा जायगा ।। ९९ । पार्थिवः ।
स
यथा ॥ १०० ॥
( पार्थिवः) राजा यदि (पथि) मार्ग में ही ( विहारानुत्सवांश्चापि ) विहारोत्सव भी ( कारयेत् ) करे तो ( स ) वह (सिद्धार्थो ) सफल मनोरथ करके वापस (निवर्तेत ) लौट आता है (भद्रबाहुवचो यथा ) ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है।
भावार्थ — राजा युद्ध के लिये प्रयाण कर मार्ग में ही उत्सव कर ले तो राजा का अवश्य मनोरथ सिद्ध होगा, मनोरथ सिद्ध कर ही वापस लौटता है ॥ १०० ॥
यदाप्य परैस्तद्वध्यते
त्रयोदशोऽध्यायः
विहारानुत्सवांश्चापि सिद्धार्थो
कारयेत् पथि निवर्तेत भद्रबाहुवचो
मारुतस्तदा ।
वा
वसुधा वारि वज्रादयो निपतन्ते
प्रतिहीयते । वक्ष्यते नृपः ।। १०१ ।।
प्रयाण काल में (वसुधा ) पृथ्वी (वारि) पानी से भर जाय (वा) अथवा (यस्य) जिसके ( यानेषु ) वाहन आदि (प्रतिहीयते ) हीनता को प्राप्त हो व सेनाके ऊपर (वज्रादयोनिपतन्ते) वज्र गिरे तो ( स ) उस (नृपः ) राजा की ( सैन्योवध्यते) सेना वध को प्राप्त हो जाती है।
भावार्थ राजा के प्रयाण काल में उसके वाहनादि हीनता को प्राप्त हो अथवा सेना के ऊपर वज्र बिजली आदि गिरे तो समझो राजा की सेना का नाश हो जायगा ॥ १०१ ॥
यस्य यानेषु ससैन्यो
निर्वर्त्तते ।। ९९ ।।
सर्वेषां शकुनानां च प्रशस्तानां स्वरः पूर्णं विजयमाख्याति प्रशस्तानां च
( सर्वेषां ) सम्पूर्ण ( शकुनानां ) शकुनों में (स्वरः ) स्वर शकुन (शुभः) शुभ
शुभः ।
दर्शनम् ॥। १०२ ।।